चारुदत्त चरित्र | Charudatta Charitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चारुदतत चरित्र। [७
१७४१।ब११ब 1111१111 5911४
करती हूं। पुत्र भाष्निके लिये में सब कुछ करनेको तैयार ह ।
कहिये स्वामी ! मेरे कब और कैसे पुत्र होगा या में योंदी
अपुत्रवत्ती रहकर अपना जीवन पूरा कर दूंगी !
तव युनिराज बोले कि पुत्री ! तू शोकका परियाग कर,
चिन्ताओंको छोड़ दे और धेये धारण कर विवेकसे काम ले ।
क्या कभी कुदेबोंकी पूमासे पुत्री प्राप्ति होता है ! कोई भी
देव ऐसा नहीं हे जिसकी पूना मानता करनेसे पुत्रकी प्राप्ति
होती हो ! यह तो कर्मोदयके आधीन है। यह जानकर तुझे
प्रसन्नता होगी कि अब कुछ समय बाद तेरे एक पुत्र रत्व
होगा। ভু देगी पुजा मानता छोड दे। जो सची पुरुष इस
प्रकार अभीष्रसिद्धिकी अभिरापासे कुदेवोंकी पूजा करते हैं
वे अन्तमं दुख पाते हैं।
चेटी | तुझे यह खबर नहीं है कि मिथ्यादेवोंकी पूजासे
सम्यक्तका नाश होता है, धर्मकम सब मिट जाता है और
अभीएकी सिद्धि मी नहीं होती । त विश्वास रख कि अपने
पुण्य पापफे জিলা আহ কাই জা ই किसीका कुछ सुधार
या बिगाड़ नीं सकता। जो रोग सम्यक्तदीन होकर मिथ्य
तका सेवनं करते है पे स्वस भी सुख प्राप्त नहीं करते ओर
अंतमे नरकर्था यातनाय सहते रै । जो अविवेकी मतुष्य सच्च
वीतराभी देवको छोडकर ऊुदेवोके सामने मस्तक रगडा करते
ह षे दुगेततिम जाते है । इसलिये त॒ मन वचन कायसे श्री
जिनेन्द्र मगवानकी सेवा कर और जेनपर्म पर पक्का श्रद्धान
User Reviews
No Reviews | Add Yours...