अनुरागरत्न | Anuragratna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1” (0 ५ পিসি, পিপি সপ क 0/0 १५ 1 न ॥ ৬ | सूकर 6 भन्द्‌ 4 कष च| शि खो ।क्‍ শু शुद्ध । ५ | ॥। भूमिकोद्धास [ १९१ | भामादिक पोच पक्तपात के न पास হই) सत्य को असत्य से अशुद्ध करती नहीं | प्नोपाधिक धारणा न सिद्धि के समीप टिके, स्वाभाविक चिन्तन में भूल भरती नहीं ॥ न्याय की कठोर काट छांट को समोद सुने, कोरे कूटवाद्‌ पर कान धरती नहीं । शकर अशफ महावीरता सरस्वती की, | उद्धत श्रजनान जालियों से उरती नदी ॥४॥ | मत तारों की कुबासना दमक सारी, दिक विवेक तप तेज में बिलाती है। येय ध्यान, धारणादि, साधना सरोबर में, सामाधिक संयम सरोरुह खिलाती &॥ शेकर से पापे सिद्ध चक सिद्धि चक को योग दिन में मेद रजनी मिलाती है। ब्रह्य रवि ज्योति महवीरता सरस्वती की, शुद्ध अधिकारियों को अमृत पिलाती है ॥५1॥ व्रह्मा, मनु, यद्भिरा, वसिष्ट, व्यास, गोतम से; सिद्ध, मुनि मण्ठल के ध्यान में घसी रही । राम ओर कृष्ण के प्रताप की विभूति वनी, ` बुद्ध के विशुद्ध नव लक्ष्य में लसी रही ॥ शेकर के साथ कर एकता कबीरजी की, सुरत सखी के गास गास में गसी रही । मट मत पन्थ महादीरता सरस्वती की, | देव दयानन्द के वचन मे वसी रही॥६॥ |




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