लघुत्रयी की शैलीगत रुढियों का समीक्षात्मक अध्ययन | Laghutrai Ki Shailigat Rudhiyo Ka Samikshatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
291
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)৭ छठी शताब्दी ई का मत
२ गुप्त कालीन मत अथवा चतुर्थ शताब्दी ई सम्बन्धी मत
३ ईसा पूर्व द्वितीय शती का मत
४ ईसा पूर्व प्रथम शती का मत
१ छटी शताब्दी का मत
इस मत के प्रबल समर्थक प्रो भेक्समूलर है। उनका यह मत काव्य का
पुनर्जागति सिद्धान्त নত आधारित है जिसका प्रतिपादन उन्होने अपनी पुस्तक
11012- * {121 [{ (वा) {८८1 पऽ? मे किया हे | उनका कथन हे कि ईस्वी सन् की
प्रारम्भिक चार अथवा पोच शताब्दियो मे शक ओर दूसरे विदेशियो के आक्रमण के
फलस्वरूप सस्कृत साहित्य की प्रगति सर्वथा अवरूद्ध हो गयी शी फिर छठी शताब्दी
मे जाकर सस्कृत साहित्य की प्रगति सर्वथा अवरूद्ध दहो गयी शी फिर छटी शताब्दी
मे जाकर सस्कूत का पुनर्जीवनं हुआ। उसी पुनर्जीवनं काल मे कालिदास का अविर्भाव
हुआ । प्रो मेक्समूलर का यह मत फर्यूसन के विक्रमादित्य सम्बन्धी मत पर आश्रित
था। फर्ग्यूसन का मत है कि ५४४ ई मे विक्रमादित्य नामक सम्राटने शको को परास्त
किया और विजय के उपलक्ष्य मे विक्रमादित्य ने विक्रम सम्वत् प्रारम्भ किया, परन्तु
उस सम्वत् कों और अधिक महत्व देने के लिये ६०० वर्ष पूर्व की तिथि से अर्थात ईसा
से पूर्व ५६--५७ वर्ष से प्रारम्भ किया। इसी विक्रमादित्य की सभा के नौ रत्नो मे से
एक कालिदास भी थे। इस प्रकार मैक्समूलर के अनुसार कालिदास का समय ५४४
ई के आस-पास छठी शताब्दी मे था। यह मत पर्याप्त समय तक विद्धानो मे मान्य
रहा | कालान्तर मे इतिहास से यह सिद्ध हो गया कि पश्चिमी भारत मे किसी भी
विदेशी को भारत से बाहर नही निकाला गया क्योकि उनको गुप्त वशीय राजाओ ने
१०० वर्ष पूर्व ही बाहर निकाल दिया था। साथ ही यह ऐतिहासिक रूप से सिद्ध हो
चुका है कि छठी शताब्दी मे शको को नहीं, अपितु हूणो को पश्चिमी भारत से बाहर
निकाला था। वो भी विक्रमादित्य ने नहीं, अपितु यशोवर्मन विष्णुधर्मन ने। इस प्रकार
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