बाल-भोजनप्रबंध | Balbhojan Prabandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला परिच्छेद ३
का पण्डित बड़ा विद्वान है तब वह तत्काल ही उस्रको अपने
पास बुलाने का उपाय किया करता था। उसने अपनी द्धभा
मे देश-देशान्तर कं विद्वान् बुलाकर रक्खे। उसने अपने
राजनियम में एक ऐसा नियम बना दिया था कि “मेरी
राजधानी धारा नगरी में एक भी मूखं न रहने पावे । चाहे
लड़का दो! चाहे जवान, चाहे बूढ़ा हा चाहे श्लो या लड़की;
कोई भी हो, हर एक मनुष्य को विद्या पढ़नी चाहिए। बिना
विद्या के हमारे राज्य में कोई भी न रह सकेगा |”
जहाँ राजा का इस तरह का कानून हो उस देश के
सौभाग्य का कहना ही क्या है ! जिस देश को सुधारनं के
लिए स्वयं राजा ही इस तरह का उद्योग करे उस देश के सुध-
रने में कमी क्या रह सकती है! उस समय प्राय: सभी
मनुष्य मूखं थे ¦! कड अपना काम चलाने के याग्य मामून्ती
पढ़े-लिखे थे ओर कोद्-काई श्रत्तरमात्र जानतेथे। राजा
भाज को जब भ्रच्छी तरह मालूम हो गया कि हमारी प्रजा
बिलकुल मूर्ख है, कोई भी पढ़ा-लिखा नहों है तब उसने विद्या
के पढ़ने का सबको उपदेश दिया। उसने श्राज्ञा दे दी कि
मनुथ्यमात्र को विद्या पढ़नी चाहिए |
यही नहीं कि राजा भोज ने कानून बना दिया हो---
केवल यह आज्ञा ही दी हो कि खबको विद्या पढ़नी चाहिए,
किन्तु उसने अपने रुपये से सैकड़ों विद्यालय बनवाये । उनमें
देश-देशान्तर से ढूँढ़-दूंढकर अच्छे-अच्छे विद्वान श्रध्यापक
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