बाल-भोजनप्रबंध | Balbhojan Prabandh

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Balbhojan Prabandh by सुन्दरलाल शर्मा द्विवेदी - Sundarlal Sharma Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला परिच्छेद ३ का पण्डित बड़ा विद्वान है तब वह तत्काल ही उस्रको अपने पास बुलाने का उपाय किया करता था। उसने अपनी द्धभा मे देश-देशान्तर कं विद्वान्‌ बुलाकर रक्खे। उसने अपने राजनियम में एक ऐसा नियम बना दिया था कि “मेरी राजधानी धारा नगरी में एक भी मूखं न रहने पावे । चाहे लड़का दो! चाहे जवान, चाहे बूढ़ा हा चाहे श्लो या लड़की; कोई भी हो, हर एक मनुष्य को विद्या पढ़नी चाहिए। बिना विद्या के हमारे राज्य में कोई भी न रह सकेगा |” जहाँ राजा का इस तरह का कानून हो उस देश के सौभाग्य का कहना ही क्‍या है ! जिस देश को सुधारनं के लिए स्वयं राजा ही इस तरह का उद्योग करे उस देश के सुध- रने में कमी क्या रह सकती है! उस समय प्राय: सभी मनुष्य मूखं थे ¦! कड अपना काम चलाने के याग्य मामून्ती पढ़े-लिखे थे ओर कोद्‌-काई श्रत्तरमात्र जानतेथे। राजा भाज को जब भ्रच्छी तरह मालूम हो गया कि हमारी प्रजा बिलकुल मूर्ख है, कोई भी पढ़ा-लिखा नहों है तब उसने विद्या के पढ़ने का सबको उपदेश दिया। उसने श्राज्ञा दे दी कि मनुथ्यमात्र को विद्या पढ़नी चाहिए | यही नहीं कि राजा भोज ने कानून बना दिया हो--- केवल यह आज्ञा ही दी हो कि खबको विद्या पढ़नी चाहिए, किन्तु उसने अपने रुपये से सैकड़ों विद्यालय बनवाये । उनमें देश-देशान्तर से ढूँढ़-दूंढकर अच्छे-अच्छे विद्वान श्रध्यापक




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