नाटककार हरिकृष्ण 'प्रेमी' - व्यक्तित्व और कृतित्व | Natakkar Harikrishan Premi Vyaktitva Aur Krititva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेमीजी के नाठकों कौ सूल प्रेरणा ] [ ३ करता है--सम्मिलित संघर्ष । और हिन्दू-मुस्लिम एकता उस सम्मिलित संघर्ष की शवित है । जिस देश-भक्तति ने हिन्दुत्व का रूप धारण करके भारतेन्दु को प्रेरित किया, जो आर्ये-सांस्कृतिक चेतना के रूप में प्रसाद की राष्ट्रीय प्र रणा बनी, उसी राष्ट्रीय उत्थान की भावना ने 'प्र मी! को हिन्दू-मुस्लिम एकता का चोला पहनकर प्रकाश दिखाया 1*१ प्रेमी की अपनी परिस्थितियों ने भी उसको एक आदर्श की ओर मोडदिया। वह राष्ट्रीय श्रादर्श उसके लिए अवलम्बन' बन गया । अपने जीवन' की बेबसी में प्रेमी ने समस्त राष्ट्र की बेबसी और पीड़ा क्री काँकी पाई। अपने को उसने सम्पूर्ण समाज का सजग, स्पष्ट और सम्पूणं प्रतिनिधि मानकर उन भीषण शअ्रभावों और विवशताग्रों, श्राथिक विषमताशों श्रौर किसी विशेष वर्ग को दी गईं शोषण की रियायतों का निराकरण राष्ट्रीय स्वाधीनता में पाने का प्रयत्त किया ।'*'प्रेमी के घायल मन को एक श्रादशं का श्रवलम्ब मिल गया । उसी भ्रवलम्ब को लेकर वह नाठकीय क्षेत्र में बहुत स्वस्थ लेखनी लेकर भ्रागे बहे ।* ° प्रेमी! जी के जीवन की करुणा ने ही उन्हें मातृभूमि की ममता की ओर उन्मुख किया । 'स्वण-विहान' को भूमिका में उन्होंने लिखा--'जिस मातृभूमि ने अपने प्रेम और ममता से नवजीवन दान दिया उसे प्रेमांजलि श्र्पणा करने को ही इस नाटिका की रचना हुई है ।' सच तो यह है कि प्रेमीजी के सभी ऐतिहासिक नाठक भारत की राष्ट्रीय-भावना को व्यक्त करने के लिए लिखे गये । राष्ट्रीय एकता और देश-स्वातंत्र्य की भावना ने सदा ही प्र मीजी को सजग रखा। 'रक्षा-बन्धन, 'शिवा-साधना, (विषपान', उद्धार, प्रतिशोध', श्राहुति', स्वप्त भंग! आदि भारत में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के उद्देश्य से ही लिखे गये । अपने ऐतिहासिक नाटक लिखने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए '्रेमीजी ने लिखा है---“ उद्धार की घटनाएँ ऐतिहासिक हैं-- किन्तु वर्तमान राजनीति और समाजनीति की अ्रनेक उलभनो का समाधान इसमें है। मेरा देश स्वतन्त्र हो गया; किन्तु देशवासियों ने श्रभी तक राष्ट्रीयता के महत्त्व को समा नहीं, इसलिए राष्ट्रीयता की भावनाओ्रों को उत्साहित करनेवाले साहित्य की आ्राज आवश्यकता है ।” (उद्धार!) “राजस्थान की एकताके के लिए विषपानः की नायिका कृष्णा ने विषपान किया था--ग्रौर कल ही महात्मा गांधी ने भारतीय एकता के लिए श्रपने प्राण दिये हैं। इतना बड़ा बलिदान लेकर भी हिन्दुस्तानियों ने राष्ट्रीय एकता का महत्व नहीं समझा । इसीलिए मुझे सांसक्ृतिक झौर राष्ट्रीय एकता का राग बार-बार गाना पड़ रहा है ।' (विषपान') | मैंने नाटकों की रचना निरुदद शय नहीं की है। भारत सदियों की पराधीनता के पश्चात्‌ स्वतन्त्र हुआ है और झब इसे नवाजित स्वतन्त्रता की रक्षा भी करनी है । १. और २. हिन्दी के नाटककार (श्री जयनाथ 'नलिन”) पृष्ठ १२२ और १२३.




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