श्रद्धा - कण | Shraddha - Kan

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Shraddha - Kan by वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अकि ति भ $ १११ कं केश जागरूक था वह! अहिसा की ज्योति को उसने एक क्षण भी क्षीण तो नहीं होने दिया । सत्य के হীন में हरदम बह रोम-रोस से स्नेह उंडेलता रहा; मौर हर सांस को रास-नाम की लो से जोड़ता रहा। ओर तन के तार-तार से उसने प्रेम का सुर निकाला । हां, काल ने एक पल भी उसे अचेत नहीं पाया । न 0.




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