विद्यार्थियों का सच्चा मित्र | Vidhyartiyon Ka Sachcha Mitra
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.43 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about छोटालाल जीवनलाल शाह - Chhotalal Jeevanlal Shah
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निरोग रहना मनुष्य सात्रका ध्े हू है कवासमें श्रेष्ठ रहनेके ठोमसे अशक्तिके दोते हुए भी वहुतोंकों परिश्रम- पूर्वक विद्याग्यास करना पड़ता है इससे वे जहदी जहदी थोड़े थोड़े दिनोंमिं वीमार पड़ जाते हैं । ततीन-चार पतली पतली रोटियोँ और एक दो चम्मच मात खा लेनेसे ही गढे तक पेट मर जाता है । यदि -कमी कोई जरासी भारी चीज खा ढी तो उस दिन शञामको भूखका पता नहीं रहता । यद्यपि समीकी दशा ऐसी नहीं है फिर भी सोमेंसे पचास या पचहत्तर विद्यार्थी तो ऐसे ही होते हैं इसमें जरा भी सन्देह नहीं । और तुम्हारा दरीर ही क्या अच्छा है £ बूढ़ोंकी तरह तो वैठे हो अच्छा भाज जिस घिषयका विचार करना है वह यह है-- हम सबको सुखकी इच्छा रहती है | सुखका अर्थ यही है कि हमारा मन आनन्दसे रहे और हमें अपनी इच्छाके अनुसार सब चीजें मिछती जायँ । पर दारीर निवेल होनेसे मन प्रसन्न नहीं रहता । शरीर ठीक होने पर जो चीजें बहुत रुचिकर माद्धम होती हैं वीमार हो जाने पर वे. नहीं रुचतीं । ज्वर या वुखारकी हाठतमें अच्छी बड़ी पतंग खूब बढ़िया माँजा और डोरकी रीठ देकर यदि कोई तुम्दें मकानकी छतपर जाकर पतंग उड़ानेंके छिए कहे तो कया यह तुम्हें रुचेगा ? उस वक्त तों तुमको मजेदारसे मजेदार चीज भी रुचिकर न माद्म होगी । इससे यह निश्चय होता है कि संसारमें हम लोगोंके समग्र सुखका आधार अधिकतर नीरोग शर्रीर । वीमार मनुष्यसे पेटमर खाना नहीं खाया जाता रातमें अच्छी नींद नहीं आंती .वाहर घूमा फिरा नहीं जाता और संक्षेपमें कोई मी काम निश्चयके अनुसार उससे नहीं हो सकता. । अच्छे निरोग सुद्ढ़ धर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...