जैनतत्त्वादर्श | Jain Tattvadarsh

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Jain Tattvadarsh by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( भ ) नवमे और दशव परिच्छेद मे श्रावक का दिनहत्य पूजाभक्ति, रात्रिकृत्य, पाक्तिक कृत्य, चौमासी ओर सवन्सरी आदि कृत्यों का विस्तत विवेचन रे । ग्यारहवं परिच्छेद में भगवान ऋषभदेव से लेकर महा- वीर स्वामी तक का संज्षिप्त इतिहास दिया है । ओर वारहय परिच्छेद में सगवान महावीर स्वामी के गोतम ग्रादि ग्यारह गणधर्रों की तार्विक चर्चा का उल्लेस्व करके भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद का उपयोगी इतिबृत्त दिया है । जिस में तत्कालीन प्रमाणिक जेनाचायों की कतिपय जीवन घटनाओं का भी उल्लेख है । इस प्रकार यह ग्रन्थ बारह परिच्छेदों में समाप्त किया है | भापा--- प्रस्तुत श्रथ की भाषा आज़ कल की परिष्कत अथवा खनी हुड हिन्दी सापा से कुछ विभिन्नता ओर कुछ समानता रखती हुईं हे । आज से पचास वर्ष पहिले प्रचल्ठित बोल्चाल की भाषा से अधिक सम्बन्ध रखन बाली और साहचये वरात्‌ पजावी, गुजराती ओर मारवाड़ी के मुहाबिरे के कतिपय शब्दं को साथ लिये हुए हे । परन्तु इस से इस के महत्व में कोई कमी नहीं ञहाती । भाषाओं के इतिहास को जानने वाले इस बात की पूरी साक्षी देंगे, कि अन्य प्राकृतिक वस्तुओं की भांति भाषा और लिपि में भी परिवर्तन बराबर होता रहता हे | परिवतेन का यह नियम केवल हिन्दी भाषा




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