जैनतत्त्वादर्श | Jain Tattvadarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
662
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( भ )
नवमे और दशव परिच्छेद मे श्रावक का दिनहत्य
पूजाभक्ति, रात्रिकृत्य, पाक्तिक कृत्य, चौमासी ओर
सवन्सरी आदि कृत्यों का विस्तत विवेचन रे ।
ग्यारहवं परिच्छेद में भगवान ऋषभदेव से लेकर महा-
वीर स्वामी तक का संज्षिप्त इतिहास दिया है ।
ओर वारहय परिच्छेद में सगवान महावीर स्वामी के
गोतम ग्रादि ग्यारह गणधर्रों की तार्विक चर्चा का उल्लेस्व
करके भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद का
उपयोगी इतिबृत्त दिया है । जिस में तत्कालीन प्रमाणिक
जेनाचायों की कतिपय जीवन घटनाओं का भी उल्लेख
है । इस प्रकार यह ग्रन्थ बारह परिच्छेदों में समाप्त
किया है |
भापा---
प्रस्तुत श्रथ की भाषा आज़ कल की परिष्कत अथवा
खनी हुड हिन्दी सापा से कुछ विभिन्नता ओर कुछ समानता
रखती हुईं हे । आज से पचास वर्ष पहिले प्रचल्ठित बोल्चाल
की भाषा से अधिक सम्बन्ध रखन बाली और साहचये
वरात् पजावी, गुजराती ओर मारवाड़ी के मुहाबिरे के
कतिपय शब्दं को साथ लिये हुए हे । परन्तु इस से इस के
महत्व में कोई कमी नहीं ञहाती । भाषाओं के इतिहास को
जानने वाले इस बात की पूरी साक्षी देंगे, कि अन्य प्राकृतिक
वस्तुओं की भांति भाषा और लिपि में भी परिवर्तन बराबर
होता रहता हे | परिवतेन का यह नियम केवल हिन्दी भाषा
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