भारतवर्ष का सांस्कृतिक गौरव | Bharatvarsh Ka Sanskritik Gaurav

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bharatvarsh Ka Sanskritik Gaurav by शिवकुमार श्रीवास्तव - Shivkumar Srivastav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवकुमार श्रीवास्तव - Shivkumar Srivastav

Add Infomation AboutShivkumar Srivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ७ ) वह वस्तु ই कत्ता का हृदय । जीवन भर टोपी चरिन्न पर सीकर, .कुरान शरीफ़ की प्रतिलिपियां करके निष्पक्ष दष्ट जीवन यापन करने वाला भारत का सम्राट यदि हिन्दुओं पर जज़िया लगाता हे, मन्दिर तोड़ता है तो उसका कारण ओर चाहे जो कुछ रहा हो उसका अत्या चारी स्वभाव नहीं है । फिर ऐसे फ़कोर बादशाह से भी भल हो गई जिसका कुफल उसके वंशधरों को हाथों हाथ मिल गया | अब विचारणीय यह है कि क्या इसके कारण हमें यह अधिकार है कि हम उसके मन्दिर विनाश की ओर ही देखें उसकी व्यक्तिगत जीवन चय्यों की ओर से आँखें बन्द करलें । नहीं । उचित तो यह है कि हम अपने व्यक्तिगत जीवन के लिये उसे आदशे बनावें तथा उसकी भूल साम्श्रदायिक्रता के अन्धविश वास से बचने की चेष्टा करें | इतिहास हमें यही सिखाता है । जैसे व्यक्ति भूल कर सकता है वेसे ही समूचा समाज और राष्ट्र भूल कर सकता है। ११ वीं और १२ वीं शताब्दी का भारतंवषं इसी प्रकार की भूल का ज्वलन्त आदरशे सामाजिक भूज्ों है। राजपूती आन रहे चाहे राष्ट्र विनाश हो के प्रति. जाय | चारपाई पर पड़े-पड़े न मरने के लिये जिस जाति में युद्ध की आवश्यकता हो उस जाति के वंशधरों को एणड़ियां रगड़ कर मारना चाहिये। परन्तु क्या इसके लिये आज ज्षात्र जाति की हीन स्थिति के लिये सम्पृणेतया उनके उन पूर्वजों को ही उत्तरदायों बना दिया ज्ञाय, उनकी धमनियों में प्रबल्ल मानस ओजरत्री तेज की सबंधा उपेक्षा कर दी जाय जिसके कारण आज़ भी क्षत्रिय




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now