योगसाधन की तैयारी (1923) | Yogshadhan Ki Taiyari (1923)

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Yogshadhan Ki Taiyari (1923) by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१६) ही चाहिये, दुगैध आनेपर यह नारान होता हे, आंखकनो उत्तमः सुद्र आकार चाहिए, कुरूप शकटं सन्मुख आनेपर्‌ यह घरात है, कानके चयि মুত स्वर चाहिये, ककरा आवाज जब आने रणता है तब यह असंतुष्ट होता है, निहाके लिये उत्तम स्वादु पदार्थ चाहिये, वेसे पदार्थ न मिलनेपर यह हठ करने छगती है | नर्मेंद्रिय को नरम नरम स्पशेवाले पदार्थ चाहिये तब कारये करता है नहीं तो हडताल करने छगता ই । इसप्रकरार ये अध्यापक किंवा ब्राह्मण बडा ऐश आराम चाहते हैं, इनमेंसे कोई भी कष्ट करनेके लिये तेयार नहीं है । इनको कितनी भी दक्षिणा दी नवि, ये कभी तृप्त नहीं होते | इनके अंदर इस प्रकार भूख हेनेप्ते इनका वेतन बदति बढ़ाते महाराजासाहेब किसी किसप्ती समय तंग आजति है, परंतु इनको उप्तकी कोई पर्वाह नहीं है। “ ऐसे वैतनिक सेवक राष्रका क्या छाभ करेंगे १” हाथ, बाह आदि क्षत्रिय भी वेतन मिलने तक ही सेवाका कारये करते हे । मर मूत्र द्वारोकि रक्षक भी थोडीसी विरुद्ध बात होनेपर ऐसे नाराज होते हैं, ओर अपना काम छोड देते हैं । इन মর্ী- योँकी हडताल जन इपर र्ट हो जाती हे त संपूर्ण राष्ट्रपर बडी ही आपत्ति आ जाती हे । इसप्रकार उक्त वर्मणो ओर क्षत्रियो पूणं स्वाथे होनेपे, य अपने सुखदा विचार अधिक करते हैँ ओर सव॒ शरीर- ख्पौ राष्ट्का विचार क्म करते हैँ | इने जति मेद मी 45. ऐसा कठोर हैं, कि एक जातिका वीर दूसरी जातिके वीरका




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