हिंदी गद्य के युग निर्माता | Hindi Gaddh Ke Yug Nirmata

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Hindi Gaddh Ke Yug Nirmata by जगन्नाथ प्रसाद शर्मा - Jagannath Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) की एकरसता कुछ बिखर सी उटी हे पर 'तितलीः मेँ आकर प्रघ कौशल सवथा संयत और सुगठित दिखाई पड़ता है। इसमें उप- न्यास के संपूर्ण अवयवों का पूर्ण विकास संयत-और मुखरित हो गया है । तितली के रूप में भारतीय जीवन के आादशों और आकांक्षाओं की अच्छी अभिव्यक्ति हुईं हे। क्रियाकल्प विषयक सभी गुण इस उपन्यास में स्फुट ह्ये उठे हैं। इरावती मे आकर तो श्रसाद' का प्रसाद्‌ निखर उठा है, अपूर्ण होकर भी यह रचना लेखक की पूर्णोता का अबुमानाश्रित स्वरूप स्पष्ट कर देती हे | यदि कृति कहीं पूरी हो जाती वो अवश्य ही जयशंकर '्रसादः उपन्यास-रचना के क्षेत्र में अमर हो जाते, पर उसका वर्तमान रूप-रंग उनकी विषय-पढुता का पूरा प्रतिनिधित्व कर देता है । कहानियों ओर उक्त उपन्यासों के अतिरिक्त 'प्रसादः का विशेष महत्त्व उनके श्रेष्ठ नाटकों के कारण मानना चाहिए। यों तो कुछ मत्खरी ओर प्रतिहंी सामान्य समाह्नोचक इन नाटकों के दोष- दशेन मेँ ही प्रवृत्त हुए है शौर आत्मघातों की बाढ़ को अमारतीय कह कर सीन-मेष करते हैं, पर बात ऐसी है नहीं। इन युगांतर- कारी नाठकों ने प्राचीन भारत की गौरव-गाथा को प्रभावशात्री रूप मे उपस्थित कर अपने लक्ष्य की पूति की है घौर सफलता- पुवंक अतीत की नाव्य-रचना-पद्धति के मेल में आ गए हैं। इति-* हास की पूरे खंगवि, काव्य-मावना का उन्मेष शौर सजीव जीवन- दर्शन की अभिव्यक्ति के कारण इनकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम हे । साध्य-खाधन का इतना सुंदर समन्वय अन्यत्र मित्नना दुल्लेभ ही हे। चाहे रस-निष्पत्ति के विचार से वस्तु की विवेचना हो चाहे व्यक्ति-वैचिज्यवाद के आधार पर देखा जाय इनका महत्त्व किसी रूप में दुर्बल्ल नहीं मालूम पड़ेगा। उत्तर




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