किरण - वीणा | Kiran Veena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवोन्मेष पिर किशार क्वारे स्वप्नो का क्चनारी सौन्दय वरमता-- दवि मुकुलित कर अतर \ पिम वसत के सूर्य स्पश से दहक उठा किर प्राणा का वन, अनिर्वाप्य इच्छा का पावक सोया था आमा मे गोपन,-- उमड़ सिन्धु-आनद छोटता जीवन के चरणा पर! कौन शबित यह मेरे भीतर शखो की सी नादित पर्वत लोक जागरण वी बेला म चघांपित करती जीवन जभिमत २ छो, इद्रिय माणिक मदिर का खुला स्वगें तक स्फाटिक तोरण, जपते देवदूत यत मे भर हीरकं स्पदन 1




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