हिन्दुस्तानी गद्य पद्य संग्रह | Hindustani Gadhya Padhya Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्‌ चिरकालके वियोगके बाद जब किसी दिली दोस्तसे मिलना होता है तो उस समय हर्पसे अंग अंग ढीला पड़ जाता है, गला रुक जाता है, जीभ इतनी शिथिल पड़ जाती है कि उसे खुशी प्रकट करनेके लिए एक एक शब्द बोझ-सा मारूम होता है | पहले इसके कि वह शब्दोंस अपना असीम आनन्द जाहिर करे, सहसा आँसूकी नदी आँखमें उमड़ आती दै । सचे श्रमकी कसौटी भी इसीसे हो सकती है | अपने भगवानके भजनमें जिसने आँसू न बहाएं, देवताका दर्शन करके जिसकी आँखमें आँसू न भर आए, वह कहाँका भक्त ओर केसा प्रेमी ः नरम दिलवाले अपने दिलके सुख-दुखकों छिपानेकी हजार हजार चेष्टा करते हैं, पर आँसू इस सारी चेशको व्यथ कर देता है । मोती-सी आँसूकी बूँदेँं जिस समय सहसा आँखसे झरने ख्गती हैं, उस समय उन्हें रोक উলা बड़े बड़े शूरवीरोकी भी शक्तिसे बाहर हो जाता है । अगर भगवान शोकमें रोना जरूरी न बनाता तो बड़े बड़े भारी दुखोंके वेगको कोन सँभाठ सकता ? इसी बातकों भवभूातिने यौ कहा है कि जब बरसातमे तालाब भर जाता है तब बाँध तोड़कर उसका पानी बाहर निका देना ही जिस तरह उसके बचावका उपाय है, उसी तरह रोके ब्याकुल आदमीका आँसू बहाना ही हृदयको टुकड़े टुकड़े होनेसे बचा ठेनेका उपाय है । बल्कि ऐसे समय रोना ही राहत हे । जो शूरवीर युद्धकी-चर्चा ही से जोशमें आ जाता है और जो लड़ाईके मेदानमें गोली और तीरकी वषीको फ्रूछकी वर्षा मानता है, ओर जो वीरताकी उमंगमे छडने-मरनेकरो तेयार हो जाता दै,-




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