चतुरसेन के उपन्यासों में इतिहास का चित्रण | Chaturasen Ke Upanyason Men Itihas Ka Chitran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chaturasen Ke Upanyason Men Itihas Ka Chitran by विद्याभूषण भारद्वाज - Vidyabhushan Bhardwaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विद्याभूषण भारद्वाज - Vidyabhushan Bhardwaj

Add Infomation AboutVidyabhushan Bhardwaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
९ € € টি साहित्य और इतिहास : १ - साहित्य दाव्द की व्युत्पत्ति सहितस्य भावः साहित्यम्‌ - सहित का भाव साहित्य कहलाता है। संपुर्वक धा घातु से 'क्त' प्रत्यय करने पर 'दधातेरिह:' अष्टाध्यायी के इस सूत्र से 'धा' को 'हि' प्रादेश होने पर 'सहित' शब्द व्युत्पन्त हुआ । प्र्थात्‌ অহ उपसर्ग और “घा' धातु से मिलकर साहित्य शब्द बना है। भ्रव प्रश्न उठता है कि (सहितः शब्द का अर्थ क्या है। सहित शब्द केदो प्रच होते हैँ १. सह = साथ होना, २. स ~- हितम्‌ = हितेन श्रर्थात्‌ हित के साथ होना, जिससे हित का सम्पादन हो । सहित चान्द के उपयु क्त दोनो श्रर्थों की व्याख्या विद्वानों ने अपने- अपने दृष्टिकोण से की है जिससे साहित्य शब्द निर्मित होता है। बाबू गुलाबराय के मता- नुसार-- “सह साथ होने के भाव की प्रधानता देते हुए हम कहेगे कि जहाँ शब्द और अये, विचार और भाव का, परस्परानुकूलता के साथ सहभाव हो वही साहित्य हैं। शब्द और श्र्थ का सहित होना स्वाभाविक रूप से ही माना गया ।”* “साहित्य का पर्थ हितेन सह सहित लगाते हुए हम कहेगे कि साहित्य वही है जिससे मानव हित का सम्पादन हो । हित उसे भी कहते है जिससे कुछ बने, कुछ लाभ हो - “विदधातीति हितम्‌' आनन्द भी एक लाम है 1 “सहित का अर्थ है दो का योग, अ्रथवा धीयते जो धारण किया जाये वह है हित । हित के साथ जो रहे वह है सहित श्रौर उसका भाव है साहित्य । श्रथवा सहयोग मे अन्वित माव साहित्य है । 'सहितयोर्माव साहित्यम्‌र के आधार पर कहा गया है कि शब्द और. श्रर्थ दोनों के मेल को साहित्य कहते है ।”' “सस्कृत के सहित शब्द का अर्थ है साथ और उसमे भाववाचक प्रत्यय जोड़ देने पर सहित्य शब्द की सिद्धि होती है, जिसका श्रारय होता दै, समन्वय, साहचरय॑ अर्थात्‌ दो तत्वों की सहचरी सत्ता ।****** उस (साहित्य) की प्रमुख-वृत्ति हमारे मनोवेगो को तरगित करना है | और मनोवेगो के तरगित होने पर बाह्य जगत के साथ ऐसा रागात्मक सम्बन्ध स्थापित होता है जो श्रपनी चरमकोटि पर पहु चकर उस जगत्‌ के साथ हमारा ऐक्य स्था- पित कर देता है । इस अनुभाव्य और अनुभावक के तादात्म्य को ही रस कहते हैं और इस रस वाले वाक्य को ही हमारे साहित्यश्ास्त्रियों ने काव्य अर्थात्‌ साहित्य. कहा है ।”* 'सहितस्यभाव: साहित्यम्‌' को व्याख्या करते हुए कवीन्द्र रवीन्द्र ने कहा है -' “सहित शब्द से साहित्य की उत्तत्ति होती हैं अतएवं धातुगत अर्थ करने पर साहित्य शब्द में मिलन का एक भाव दृष्टिगोचर होता है। वह केवल भाव का भाव के साथ, भाषा का ৭ बाबू गुलाबराय ; काव्य के रूप पृ० २। वही দৃও ই। ३. डा ० दशरथ जड : समीक्षा शास्त्र पू० २। ४, डा ० सूर्यकान्त : साहित्य मीमासा, प° २० ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now