जीव - जगत | Jeev - Jagat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লি १ 9 ~ होने सारे भूमंडल को घेर लिया । उनसे हौड लेनेवाला कोई भी जीव पृथ्वी परं न रह गया ओर वे सारे संसार के स्वामी बन गयं 1 अपना अधिक समय स्थल पर बिताने के कारण इन प्राणियों के पैर सुदृढ़ और खुश्की पर चलते के योग्य हो गये लेकिन इनमें से कछ ने अपने पर साँपों की तरह खो दिये तो कुछ के पेर पानी में तैरने के लिए पतवारनमा हो गये और कुछ ने अपने शरीर पर एक प्रकार की झिल्ली का ऐसा विकास किया जिसकी सहायता से वे पक्षियों की तरह आकाश मे उड़ने रूगे । लेकिन आकाश में उड़नेवाले ये सरीसप, जिनकी जाँघ से लेकर हाथ की उंग- लियों तक एक मजबत झिल्ली का विकास हुआ था, हमारी चिड़ियों के पूर्वज नहीं थे। चिड़ियों कै पूर्वंन तो दूसरे ही सरीसृप थे जिनको प्रत्मपुंखीय या आकियोप्टश्क्स ( 37८18००.४८:ए5 ) कहा जाता है। ये यद्यपि अपना जीवन अन्य सरीसूपों के समान ही बिताते थे लेकिन इनकी विशेषता यह थी कि इनके शरीर पर पर थ । उस समय के भीमकाय सरीसूपों में डाइनासोर ( 10170080फए705 ) सबसे प्रसिद्ध थे जिनकी एक नहीं अनेक जातियाँ थीं। इनमें डिप्लोडोकस ( 191910- ५०८८७ ) नाम के डाइनासोर की लंबाई लगभग ९० फूट तक पहुँच गयी थी । यह शाकाहारी जीव था जिसकी दुम और गरदन तो बहुत लम्बी और पतली थी लेकिन जिसका मस्तिष्क मुरगी के अण्ड से बड़ा नहीं था। दूसरा प्रसिद्ध डाइनासोर ब्राकियोसोरस ( 979८४०052प7०७ ) था जो वजन में सबसे भारी था। इसका वजन लगभग ५० टनहोता था। यदि वह आज जीवित होता तो सड़क पर खड़े | न होकर हमारे घर की जा “प ०१२५, ८ ५ ५। ९ हैः সি दूसरा मंजिल तक पह- ती ~ ২১২১২ হিয়া कु ते के है गे 1 ||| 16 | = ও এ 1 ध নল ন उस जच म» न सता च्य = == कठिनाई न होती। ये 77 -दोनों जीव पानी या कीचड़ मे रहते थ जहाँ उन्हें अपने भारी शरीर को इधर-उधर हे जाने में ज्यादा कठिनाई नहीं पड़ती थो । डाइनासोर




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