कांकरोली का इतिहास भाग - 2 | Kankroli Ka Itihas Bhag -2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ कांकरोली का इतिहास ০ এ सो नौ. मं मी मी कप রস পিসী সি নি कोपेति (6५.४११ ५ পট ५५५८१ চালা সিরা সির ৪ বি राजसमुद्र बनने के पहिले यह एक छोटी-सी आबादी का गाँव था। इस समय का इसका कोई वरणुन इसलिये नहीं मिलता कि--वह किसी घटना से अपना विशेष सम्बन्ध नहीं रखता। 'राजप्रशस्ति' काव्य में राजसमुद्र के निर्मौश-प्रकार में कई स्थानों पर इसके नाम का उल्लेख किया है, जिसमें उसके कई कुआँ, बावड़ी ओर साथ की ज़मीन के तालाब के भीतर आ जाने . आदि की बात कही गई है। इसके बाद तालाब के बन जाने पर कांकरोली के समीपवर्ती बन्ध का वन करते हुए उसकी लम्बाई, चौड़ाई, उँचाई ओर बने हुए मंडप आदि तथा श्रीद्वारका- धीश के त्रिराजने आदि का भी उल्लेख किया गया है । कांकरोली नगरी के पूर्व में आसोटियागाम है, जो इसमें मोज़े के पट्टे का एक गाम है। उसके आगे कोण में तालेडी नदी आ जाती है। दक्षिण में खालसा के मौज़ा दोहिन्दा की सरहदूद मिल जाती है ओर पश्चिम में मौज़ा हवाला ( कांकरोली का वह भाग, जिसमें आबादी नहीं है ) ओर मौजा मंडाया तथा राजनगर खालसा की सरहद्द आ गई है। पश्चिम से लेकर पूत्र तक उत्तर दिशा में विशाल राजसमुद्र तालाब है । खास कांकरोली का कुल रक़बा १०६४५ है, जिसमें ४६१.४ ज़मीन पर खेती होती है। इसकी सारी ज़मीन तालाब से नीचे आ जाने से इसकी आबपाशी का ज़रिया नहर है। खेतों मे कर्ण होने पर भी काश्तकार तालाब का पानी ही सिंचाई के काम में लाते हैं | पैदावार में धान, जो, मक्‍की, गेहूँ, चना आदि होते हैं, पर रजका ज्यादा बोया जाता है, जो जानवरों के काम आता है| तालाव की नहर से ठिकाने की जमीन की जो पिला की जाती है, उस पर १५० वोधा को छोड- कर शेष की आवक खालसा मे जमा होती हे । मेवाड़ में अवंली (आडावल्ली) पहाड़ की श्रेणियाँ अजमेर और मेरबाड में होती हुई दीवेर पवतम के निकट मेवाड़ में प्रवेश करती हैं। यहाँ इनकी चोड़ाई ओर डँचाई कम , पर मारवाड़ के किनारकिनारे बह बढती गई है । कभलगद पर इनकी उ चाई ३५५८ ओर आगे गोग दा से १५ मील उत्तर में ४३१५ फूट तक पहुँच गई है। ये पव॑त- श्रेणियाँ राज्य के वायव्य कोण से लगाकर सारे पश्चिमी तथा दक्षिणी हिस्से में फेली हुई हैं । उत्तर में खारी नदी से लगाकर चित्तोड़ से कुछ दक्षिण तक ओर चित्तोड़ से देवारी तक समान भूभाग है । दूसरी पवेत-्रेणी राज्य के ईशान कोए से देवली के पा से शुरू होकर भीलवाडें ॥ तक चली गई है। तीसरी श्रेणी देवली के पास से निकलकर राज्य के पूर्वीय हिस्से में जहाजपुर, লি बीजोल्या, भेंसरोडगढ़े और मैनाल होती चित्तोड़ से दक्षिण तक जा पहुँची है | इसकी उँचाई २००० फ्रीट से अधिक नहीं है । देवारी से लगाकर राज्य का सारा पश्चिमी ओर दक्षिणी हिस्सा पहाड़ियों से भरा हुआ है।




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