पल्लव और किसलय | Pallav Aur Kisalay

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Pallav Aur Kisalay by मंगल किशोर पाण्डेय - Mangal Kishor Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ছু पल्खव ओर किसलय चारुदत्त को जल्‍लाद वधभूमि की ओर ठे जाने लगे। चारुदत्त की धर्मपत्नी चिता रचने लगी। उसका नन्‍हा बच्चा रोहसेन रोता-कलपता अपने पिता के अंतिम दर्शन के लिए आाया। पिता की गोद में वह फूट- फूट कर रोने लगा। इतने मे संयोग से वसन्तसेना बौद्ध भिक्षुक के साथ उसी रास्ते निकल आई। शकार के झूठे आरोप का भंडाफोड़ हौ गया । तब तक शविलक ने भी अत्याचारी राजा पालक का वध कर दिया। शर्विलक का मित्र आयंक राजा हुआ। आयंक के आदेश से चारुदत्त को सम्मानित किया गया। गणिका वसन्तसेना कुलवधू बनी । जब चारुदत्त से शविलक ने पूछा कि दुष्ट शकार को कौन-सा कठोर दंड दिया जाए, तब चारुदत्त ने कहा कि उसे क्षमा कर दिया जाए। इस प्रकार भरत नाट्यशास्त्र की प्रम्परा के अनू सार 'मुच्छकटिक का अंत सुख में होता है। 'मुच्छकटिक' में ऐसे तत्त्व भरे पड़े हैं जिनसे उस समय के सामाजिक, आाथिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन का विस्तृत इतिहास तयार किया जा सकता है। उदाहरणाथ्थे, वसन्तसेना के भव्य' भवन का वर्णन जिस रूप में किया गया है उससे तत्कालीन ऐश्वर्य का चित्र आँखों के सामने नाचने लगता है। इससे टीक विपरीत शविलक की गरीबी का चित्र है जो परिस्थिति के वशीभूत हौ चारुदत्त के घर से सुवर्णालंकारों की चोरी करता है। शविलक चौरकमं मे भी पूरा निपुण है। उसने हर पहलू से चौर- विद्या का गम्भीर अध्ययन किया है। उसी के शब्दों में उसका परिचय' है--- “अथं हि चतुक्दविदोऽप्रति ग्राहकस्य पुत्रः शविलको नाम ब्राह्मण: । शविलक का कहना है कि चौर-कर्म में लगे रहने पर भी उसकी बृद्धि कार्या- জা पर विचार करती है। कंसे ? इस तरह--- नो म्‌ष्णाम्यबल्ां विभूषणवतों फुल्लामिवाहं लतां, विप्रस्व॑ न हरासि काञ्चतमधो यंज्ञाथेसम्युद्ध तम । घाच्युत्संगगतं हरामि न तथा बालं धनार्थो क्वचित्‌ कार्याकायंविचारिणी मम मतिश्चौयंपिं नित्यं स्थिता ॥ अल आर दः ক আয তিল আনি ও ও হরর ~~~ ~ ২১১৩8১০০২৯৩ উর




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