जय - पराजय | Jay - Parajye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंक १२ ५ रश्य १
~~~ ~ ~~~ डट कस डा
घोष जिसने शत्रुओ का घेये विध्वंस कर दिया, अब भी युद्ध-भूमि
में गूँज रहा है ओर मारो के युद्ध-कौरल की धाक देश भर
में बेठ गई है। आज उम्र तेज वाले महाराणा, विजयी होकर,
वीर शिरोमणि युवराज चण्ड ६8 ओर कुमार राघवदेव के साथ
राजधानी लौटे हैं। प्राथेना है भगवान, तुम्हारी कृपा मेवाड़ पर
इसी प्रकार बनी रहे । उसके महाराणा सदैव विजयी हो ओर शन्न
पराजय का मह देखें ।
पुनः नत-मस्तक रोता हे ।
( सेवकों से ) ले आओ, ले आओ, दियो का थाल ले आओ !
भगवान लकुटीश की आरती उतारें ।
सव आरती उतारते ओर गाते दे ।
जय लकुटीश
जय जय जय जय जय लकुटीश
है शिव, हे शंकर, हें ईश
जय लकुटीश
जय जय जय जय जय लत्रकुदीश
लकुट दंड है तेरे साथ
विजय, पराजय तेरे हाथ
हम सेवक हैं तेरे नाथ
হুল .पर कृपा करो जगदीश
जय जय जय जय जय लङ्कटीश्
पट-परिवर्तन
& कमार चूड़ावत ।
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