अहिंसा की बोलती मीनारें | Ahinsa Kee Bolati Minare
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
263
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डालती है । ऐसा ही कुछ मध्यकाल में हुआ । महावीर और बुद्ध ने समाज की
जिन बीमारियो को मिटाने ॐ लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया था, उनके
कुछ समय पश्चात् ही वे बीमारियाँ समाज के शरीर मे पुत भयकर रूपमे
फूट पडी। जिस हिंसा महारोग का निदान करके विविध रूपो मे उपचार
किया गया था, कुछ समय पश्चात् वह रोग पुव भडक उठा । समाज में हिंसा
का पुन प्राबल्य हुआ, घामिक व साम्प्रदायिक उन्माद चिगह् जातीय-विद्रप,
पशु, दास, एवं नारी पर मन्तमाने अत्याचार (सती प्रथा) तथा शोपण और अर्थ
सग्रह का दुष्चक्र--हिसा के ये विविध रूप मानव जाति को फिर आतकित
करने लगे और वे आज तक की स्थिति में करते आ रहे है । यह ठीक है कि
कुछ उपचार भी हुए, पर जिस मात्रा मे उपचार होता रहा, रोग उस मात्रा
से अधिक प्रवल और गहरा था इसलिए रोग मिट नही पाया, वल्कि कहना
चाहिए कि अन्य कई रूपो मे फूटता रहा ।
वतमान का मानव समाज हिसा के हजारो-हुजार आतककारी रूपी
भे ग्रस्त हैं, और त्राहि-बराहि कर रहा है ।
आज का मानव पहले से अधिक सस्कत और विकसित हो रहा है,
चैज्ञानिक उपलब्धियों के बल पर वह पुराने जमाने के देवता व इन्द्र की तरह
आज जो चाहे सो कर सकता है । प्रकृति के अनन्त रहस्यों की खोज में वह
आज अण -शवित जैसे महान रहस्य को प्राप्त कर चुका है। इतना सब कुछ
होमे पर भी वह शाज पहले से अधिक अशात है, उत्पीडित है, भयग्रस्त है
मानसिक कुण्ठामो से जकडा हुमा है । आशविकयुद्धों की विभीषिका उसके
शिर पर खडी है, पत्ता नही, कब एक आणविक विस्फोट हो भौर লালন আলি
हाहाकार करती हुई जलकर ढेर हो जाए ।
विज्ञान ने ससार को छोटा बना दिया है, किन्तु उसने मनुष्यो के हृदयो
को और भी छोटा बना दिया है। आज मनुष्य के हृदय मे प्रेम, करुणा स्नेह
एवं बन्घुता के भाव समाप्त हो रहे है, जेसे इन्हे ठहरने के लिए उसके हृदय में
कोई स्थान भी नही है ।
वर्तमान युग में मनुष्य के समक्ष अनेक समस्याएँ हैं, कहता चाहिए
मकडी के जाल की तरह उप्तने ही समस्याओ को जन्म दिया है और स्वय ही
उनमे उलभ गया है। कही आशथिक विषमताओ का दुष्चक्र चल रहा है,
शोषण गौर उत्पीड़न से मानव जाति सतञ्रस्त हो रही है, तो कही वैचारिक
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