मनुष्य के अधिकार | Manushya Ke Adhikar

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Manushya Ke Adhikar by सत्यदेव - Satyadev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{१९६} कई एक भोले भाले लोग यह युक्ति लगाया करते ই कि जिसको जितना दुःख मिलता है चह|डसकी प्रारब्ध का फल है ऐसे डपदेशको को सेचा में हम यह निवेदन करेंगे फि प्रारब्ध पर भरोसा करनेवालो को हम कायर, भीरश्रौर नीच समभे हूँ । यद्द उनलोगों के लिये वड़ा अच्छा बहाना है जो ख़ुद *कुछ ऋर नही सकते; या यह ऐसे लोगों फो फिलासफो ই जो दख को नीचे स्वना चाहते दै । जव परमात्मा ने दाय पैर दिये हैं, बुद्धि दो है तो फोई बज्ञद नदीं करि मलु॒ुष्य अपने ऊपर होते हुए. श्रन्योय को चुपचाप सहन पर ले । इनिंदाख हमको वतलाता हैँ कि ततकालीन धर्म्म के नेताओं ने हमेशा अन्याय करनेवालों का साथ दिया है र्यो कि इसमे उनकी अपनी आर्थिक सिद्धि होती है। गरीबों और श्रना का साथ देने के लिये बड़ा भारी आत्मिक वल चाहिये । हमारे देश के धार्मिक नेताओं ने गरीबों पर अ्रन्याय करने के लिये फिस्तत का ढ़कोसला चला दिया है; और इतने पर भी ससरली न कर उस अन्याय को चेदों और शास्त्रों से सिद्ध करने को तय्यार हो जाते हैं । पाठक ! हम आपसे पूछते हैं. कि आपको अपने लाखों भाईयों से जबरदस्ती काम करवाने का कया हक हैं? क्‍या थे आप की तरह मलुष्य नहीं हैं! कया परमात्मा ने उन को आप को तरह फम फरने में स्वतंत्र नहीं बनाया! यदि उनके




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