श्री महावीर वचनामृत | Shree Mahaveer Vachnamrit

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Shree Mahaveer Vachnamrit by धीरजलाल शाह - DHEERAJLAL SHAH

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्परादकीय भगवान्‌ महावीर के वचनो के प्रति श्रद्धा, प्रेम और विश्वास की दढता मेरे जीवन में किंस प्रकार उद्भूत हई, इस सम्बन्ध में यदि यहाँ थोडा-सा उल्लेख किया जाय, तो अनुचित नही होगा । जैन कुटुम्ब में उत्पत्न होने के कारण भगवान्‌ महावीर का नाम तो शैशवावस्था में ही श्रवण किया था तथा चौबीस तीर्थंकरो के नाम कण्ठस्थ करते-करते वह हृदय-पटल पर अङ्कित हो गया था! तदनन्तर मेरी घर्म-परायण माता ने महावीर-जीवन के कतिपय प्रसद्ध सुनाये उससे में अत्यन्त प्रभावित हुआ था, किन्तु उस समय मेरी आयु बहुत छोटी थी, मेरा ज्ञान अति अल्प था॥ चीदह-पन्द्रह वर्ष की अवस्था में मेरी जन्मभूमि ( सौराष्ट्र के 'दाणावाडा' गाँव ) में मेरे दाहिने पर मे एक सर्प ने दं दिया, तब प्रहवीर-महावीर' नाम रटने से ही पुनर्जीवन प्रात किया था । (कर अहमदाबाद मे रहते हुए विद्यास्यास के दिनों मे एक वीर पयुषण-पवं के समय गुरुमुख से भगवान्‌ महावीर का चरित्र मेने आच्ोपान्त सुना ओर मेरे मन ने उनकी एक सञ्खलमयी मूर्ति




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