अनत जीवन | Anant Jeevan

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Anant Jeevan by डोरथी विमला - Dorathi Vimala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पवित्र आत्मा की दीक्षा ७ ईश्वर के अनुग्रह दान को प्राप्त करना । মলা = आत्मिक भोजन बाइबल के वचन 5 परमेश्वर की सर्वोच्च सत्ता को स्वीकार करना, उसकी प्रहिमा को प्रगट करना । “ˆ अनत-जीवन ^ पुस्तक का सार सक्षेपण अत्यत प्राचीन काल से मानव जाति भनुष्य कौ कथा सुनती आयी है। मनुष्य की नियति जनं मन ओर उनके स्वण। गुण- अवगुण संघर्ष शान्ति कर्तव्य अन्त करण उत्परणा सौंन्दर्य-प्रेम प्यार-विच्छेह जन्म-मृत्यु और वे सब चिन्तन जिनसे जीवन बनता है इस महाकाव्य की विषय-वस्तु हैं।बाइबल की पुनीत जीवत गाधा पर आधृत हैं। बाइबल उस अनत-जीवन की पैरवी करती है जो यह सिद्ध करता दै कि हिसा अपरिहार्य है लेकिन सब कुछ उस प्र निर्भर नहीं करता वह मात्र पाप- लिप्त जीवन का दासत्व है । इस घिनौने- स्वरूप से मुक्ति पाई जा सकती है । उपभोक्ता मनोवृत्ति वाले व्यक्ति हर युग मे हुए हैं होते रहगे । पर बाइबल इन्हे भी आत्म- परष्करण पुनरूत्थान का अवसर देती है। जीवन के अनेक पहलुभो कं पुनरावलोकन कथनी- करनी कं कड़े सामजस्य की आवश्यकता हर युग को रहती है। भलाई और बुराई की सौदबाजी से शान्ति महीं प्राप्त हो सकती। इससे भद्दे समझौतो की राहे बनती है। ऐस म ईमानदार धरम व्यक्ति রা तलाशते हैं। अधूरा सत्य अधूरी कार्यवाही आशिक दड लाभप्रद मानं जते 1 पृथ्वी पर ध्म म्याय और सच्चाई का राज्य बना रहे ( बाइबल म॑ इसी को 'परमश्वर का राज्य कहा गया है) अत परमेश्वर धर्मी-जन का चयन करता है अब्राहम को परमेश्वर ने इस्त्राएल के आदि पुरूष के रूप मे चुना कि उससे एक 'महान राज्य की स्थापना करे । इस महान राज्य को लाने के लिय परमश्वर का एक महानायक की आवश्यकता प्रतीत हुई, जा इस महाकार्य का कर। घरतां और स्वर्ग को जाड़ दिखाये नयी धरा नया स्वर्ग बनाये कि ससार अनत-जावन की आशीष पायं । आत्मिक दृष्टि से सशक्त भानव पुत्र- यौशु को अलौकिक নল ক যায (5)




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