झलकियाँ | Jhalkiyan
 श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
7 MB
                  कुल पष्ठ :  
428
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अतिम चाह
चिट्ठी । आवाज क साथ दरवाजा प्रट्सअते डाकिए ने खत
का फ्का, यढी उल्ुस्ता से खत मने শাহ আহ লীলা | চক দাহ
पला, पिरि पटा, ओर किर पटा ।
वृद्ध जोघरमिह पास धटे थ, उद्विग्न भ ओर मौन} पाल,  ऐसा
क्या कागज हे जा यार बार पढ़ रहे है ”---छ्र म जांधसिहती ए यग
का पुट था ।
“देवीसिंद का पत्र है', म॑त्रे जयाब लिया ।
ঘষা 1ই্ত का फ्रागज ! ढ़द्ध रोमाचित हो आए, रींपते हाथों
से पत्र उद्धने छीन ल्या, ऑसों म जोसू आ उतर थे। टाटी और
मुँछ फे सघन जगल म से झोक्ते, फॉपते, उनके हाठ, प्रवक्म्पम
“दब! का प्यार करने के लिए आतुर हो उठे ये ।
उस नह-से खत मे बृद्ध बी आत्मा और जीयन वे क्षरमान भर थे,
पट ने रुफने री अपनी प्रियरशाता के सारण मूक, अदात, -पथित, वह,
उसके स्य मान स जपने हन्य कौ प्यास बुझा रे थे! শী বট
थे, एक बेहांगी जा छा* थी |
यह सत्र दस नम्नता से मने-कह्ा, 'लाइए, में पते दता है ।?
वृद्ध चारे, सजग हुए, पत्र का देखा, उल्टा पलटा | पुत्र मुठ्रीस
दबाच लिया, माना स्नेह को अपने अचल से दूर करना नहीं चाहते ह |
मैंने फिर कट्ठा, 'मुझ दीजिए, म॑ परे देता हूँ ।!
“क्यों! मेंरे दिउ! का पत ढे, में खुद पटेंगा। बह भावायेट में
गरे ।
पत्र ब्रद्ध के हृदय से चिपका था, ओंसू झर रे थे जानता था,
 
					
 
					
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