झलकियाँ | Jhalkiyan

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Jhalkiyan by निरंजननाथ - Niranjan Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतिम चाह चिट्ठी । आवाज क साथ दरवाजा प्रट्सअते डाकिए ने खत का फ्का, यढी उल्ुस्ता से खत मने শাহ আহ লীলা | চক দাহ पला, पिरि पटा, ओर किर पटा । वृद्ध जोघरमिह पास धटे थ, उद्विग्न भ ओर मौन} पाल, ऐसा क्या कागज हे जा यार बार पढ़ रहे है ”---छ्र म जांधसिहती ए यग का पुट था । “देवीसिंद का पत्र है', म॑त्रे जयाब लिया । ঘষা 1ই্ত का फ्रागज ! ढ़द्ध रोमाचित हो आए, रींपते हाथों से पत्र उद्धने छीन ल्या, ऑसों म जोसू आ उतर थे। टाटी और मुँछ फे सघन जगल म से झोक्ते, फॉपते, उनके हाठ, प्रवक्म्पम “दब! का प्यार करने के लिए आतुर हो उठे ये । उस नह-से खत मे बृद्ध बी आत्मा और जीयन वे क्षरमान भर थे, पट ने रुफने री अपनी प्रियरशाता के सारण मूक, अदात, -पथित, वह, उसके स्य मान स जपने हन्य कौ प्यास बुझा रे थे! শী বট थे, एक बेहांगी जा छा* थी | यह सत्र दस नम्नता से मने-कह्ा, 'लाइए, में पते दता है ।? वृद्ध चारे, सजग हुए, पत्र का देखा, उल्टा पलटा | पुत्र मुठ्रीस दबाच लिया, माना स्नेह को अपने अचल से दूर करना नहीं चाहते ह | मैंने फिर कट्ठा, 'मुझ दीजिए, म॑ परे देता हूँ ।! “क्यों! मेंरे दिउ! का पत ढे, में खुद पटेंगा। बह भावायेट में गरे । पत्र ब्रद्ध के हृदय से चिपका था, ओंसू झर रे थे जानता था,




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