विज्ञान परिषद् अनुसंधान पत्रिका | Vijnana Parishad Anusandhan Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
67
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रेमचन्द्र श्रीवास्तव - Premchandra Srivastav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जुलाई 1991 विज्ञान 13
(2) इन्सेलवगं
जर्मन भाषा के इस शब्द का अथं पवेत, द्वीप या द्वीपीय पर्वत होता है। मरुस्थलों में शैलों के अपक्षय तथा
अपरदन के कारण कोमल शैल आसानी से टूट जाती है लेकिन कठोर शैल के अवशेष भाग ऊँचे-ऊँचे टीलों के रूप में
बच जाते हैं । इन्हीं आक्ृतियों को इन्सेलवर्ग कहते हैं । यह प्रायः गुम्बदाकार हुआ करते हैं। इनका निर्माण ग्रेनाइट
या नीस नामक चट्टानों के अपरदन तथा अपक्षय द्वारा होता है।
(3) छतरक शिला
मरुस्थलीय भागों में यदि कठोर शैल के ऊपरी आवरण के नीचे कोमल शैल लम्बवत् रूप में मिलती हैं तो
उस पर पवन के अपघर्षण के प्रभाव से विचित्न प्रकार के स्थलरूप का निर्माण होता है। तीत्र पवन के साथ रेत तथा
धघुलिकणों की प्रचुरता सतह से 6 फीट की ऊँचाई तक ही होती है। ऊपर जाने पर क्रमशः इनकी मात्रा कम हो जाती
है । परिणामस्वरूप पवन द्वारा चट्टान के निचले भाग में अत्यधिक अपघषेंण द्वारा उसका आधार कटने लगता है,
जबकि उसका ऊपरी भाग अप्रभावित रहता है। इस तरह एक छतरीनुमा स्थलरूप का निर्माण होता है, जिसे छत्नक
शिला कहते हैं। सहारा में इसे गारा तथा जर्मनी में पिट्जफेल्सन नाम से जाना जाता है।
(4) भू-स्तम्भ
द शुष्क प्रदेश में जहाँ पर असंगठित तथा कोमल शेल के ऊपर कठोर तथा प्रतिरोधी शैल का आवरण होता
है वहाँ पर इस आवरण के कारण नीचे के कोमल शैल का अपरदन नहीं हो पाता है । परन्तु समीपी कोमल चट्टान
का अपरदन होता रहता है, जिस कारण अगल-बगल की शैलें कट कर टूट जाती हैं और कठोर शैल का आवरण
भाग एक स्तम्भ के रूप में सतह पर दिखाई पड़ता है। इसे भू-स्तम्भ कहा जाता है !
मरुस्थली भाग में यदि कठोर तथा कोमल शैलों की परतें ऊपर-नीचे एक दूसरे के समानान््तर होती हैं तो
अपक्षय तथा वायु द्वारा अपरदन के कारण विचित्न प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण हो जाता है, जिसका ऊपरी भाग
कम चौड़ा तथा निचला भाग अधिक चौड़ा होता है। परन्तु उन स्थलरूपों के ऊपरी भाग पर कठोर शैल का आवरण
होता है तथा उनका ऊपरी भाग समतल होता है। ऐसे स्थलरूपों को ज्यूजेन कहा जाता हैं। इनका निर्माण अपक्षय
तथा विशेषक अपरदन के फलस्वरूप होता है। ये 90-150 फीट तक की ऊँचाई के होते हैं ।
(6) यारडंग
इसका निर्माण पवन के अपघर्षण द्वारा होता है। इनकी ऊँचाई 20 फीट तथा चौड़ाई 30-120 फीट तक
होती है । कठोर शैलो के मध्य कोमल शैलो के अपरदित होकर उड़ जाने के कारण कठोर चट्टानों के भाग खड़े रह
जाते हैं। इन शैलों के पाश्व में पवन द्वारा कटाव होने से नालियाँ बन जाती हैं। इस तरह के स्थलरूप को यारडंग
कहते हैं। ये प्रायः पवन की दिशा से समान्तर रूप में होते हैं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...