औधोगिक संगठन एवं प्रबन्ध | Audhogik Sangathan Evam Prabandh

Audhogik Sangathan Evam Prabandh by चंद्रदेव प्रसाद श्रीवास्तव - Chandradev prasad shreevastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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औद्योगिक प्रवन्ध का विकास ९ सन्‌ १८७१ मे आक राईट (70০৫৫217086) নি ছানী से चलने चाले करे का आविष्कार क्िया। सन्‌ १७७९ म দাদ্যতন (59700৩1 0770109) ने म्यूल ( १1७४० ) का जाविप्कार किया तथा सन्‌ १७८६४ में कार्टसइट (3. ६00४ (भा ) ने एक नवीन करये का आविष्कार क्रिया) धीरे-धीरे नए-नए आविप्कार और हुए तथा पुराने आविप्कारों मे उन्नति होती गई।1 ओद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव औद्योगिक तान्ति के फलस्वरूप उत्पादन विधियों में मामूली परिवर्तन हो गया । पहले जहाँ छोटे छोटे कारीगर साधारण ओजारों से माल तैयार किया क्रते ये, पव उसके स्थान पर बड़े वड़े कारखाने स्थापित हौ गये। হন प्रारानो मे हजारो मजदूर एक साथ वाम करते ये। मानवीय शक्ति का स्थान धीरे धीरे वाप्प की झक्ति ले रही थी नौर मीनो का उपयोग बढ़ता जा रहा था। यद्यपि औद्योगिक आन्तिका आरम्भ सवं प्रथम इगलेड में हुआ परन्तु शीघ्र ही यूरोपीय देशों मे भी इसका प्रचार होने लगा । औद्योगिक जाति के फलस्वरूप व्यापार के क्षेत्र का विस्तार हुआ। लम्बे पैमाने पर उत्पादन होने से एक व्यक्ति के लिए बहुत से लोगों की आवश्य- क्ताओ को पूरा करना सम्भव हो गया। इसका सामाजिक तथा जाधथिके क्षेत्र मे बडा गहरा प्रभाव पडा । नए-नए नगर खानों के निकट बसने लगे | पुराने नगरोको प्रतिष्ठा नष्टौ गई। हत्रारो की सख्या मे कारीगर बेरोजगार हो गये । वे भाग भाग कर जीविका की खोज में नगरो में आने लगे। घरो की समस्या जटिल हो गई। मिल मालिकों ने मजदूरों की कमजोरी का लाभ उठाकर उनका खूब झोयण किया । उनसे अठारह-अठारह घटे काम लिया जाता था, और वेतन इतना अल्प था कि घर के सभी लोगो को काम पर ज्यना पडता था। छोटी अवस्था के बुकुस्पर बालक तक काम में लगाये गये । जाये दिन दुघंटनाये होती थी, परन्तु मजदूरों की दक्या को पूछने वाला कोई न था। यह स्थिति अधिक समय तक कैसे टिक सकती थी। शीघ्र ही सरकार को मजदूरों की सुरक्षा के लिए आवश्यक नियम बनाने पडे । काम की दशाओं में भी तमझ सुधार हुआ। परन्तु इस व्यवस्था मे करीब एक जताब्दी लग गई तथा इस बीच मे मजदूरों को घोर कृष्ट का सामना करना पश । ५




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