हिंदी - काव्य में प्रतीकवाद का विकास | Hindi - Kavya Me Prateekvad Ka Vikas

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Hindi - Kavya Me Prateekvad Ka Vikas by वीरेंद्र सिंह - Veerendra Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ ९२: मिली है, जिनके प्रति मैं पूर्ण आमारी हूँ | कल्याण! की पुरानी फ़ाइलों तथा भंड[रकर रिसर्च इन्स्टीव्यूड के অনন্ত ने भी मेरे विवेचन की आवार-मूनियां निश्चित की हैं । | इस दृष्टिकोण के अतिरिक्त मैंने भाषागत प्रतीकनदशंन का भी यथोचित समन्वय अपने विवेचन में प्रसंगानुसार किया है। इसका कारण यही है कि शब्द का अर्थ-वैविध्य भी उसे कभी-कभी प्रतीक की श्रेणी तक पहुँचा देता है, और अपरोज्ष रूप से प्रत्येक शब्द ही प्रतीक का रूप होता है । यमक, श्लेप, रूपकातिशयोक्ति तथा अनेक शब्द-प्रतीकों में शब्द का यही उन्नत रूप प्रात होता है । इस दृष्टिकोण का प्रसार इस प्रबंध में अनुस्यृत प्राप्त होगा । भाषागत प्रतीक-दर्शन के अध्ययन तथा अनेक श्रान्तियों के निवारणार्थ भें ভা हरदेव बाहरी का भी आमारी हूँ जिन्होंने मुझे इस दिशा में विशेष सहायता प्रदान की है | प्रथम तीन अध्यायों के प्रतीकवादी दर्शन के विवेचन में मुझे ड[० धर्मबीर भारती ने अनेक संदर पुस्तकों की ओर निर्देश किया था जिनके द्वारा में प्रतीक-दर्शन के विशाल क्षेत्र को हृदयंगम कर सका | अँग्रेज़ी तथा फ्रांतीसी प्रतीकतरादी काव्य के अध्ययन में मुझे श्री ज्योतिस्वरूप सक्सेना से विशेष सहायता मिली, जिन्होंने पाश्चात्य साहित्य के अनेक आयामों का उद्घायन किया | इन सब निर्देशों ने मुझे मार्ग! का अन्वेषी बनाया । पूज्य डॉ० रामकुमार वर्मा का यह कथन बरबस मेरे मानस-पटल पर उभर आता है कि शोध छात्र को 'मार्गं) भर दिखाया जा सकता है, उस मार्ग पर चलना उसका कार्य है। मार्ग पर गतिवान होने की “शक्ति! पूज्य डॉक्टर साहब की ही प्रेरणा है जिनका सम्बल पाकर मैं इस महत्‌ कार्यको कम से कम समय में पूर्ण कर सका । डॉक्टर साहब की ही प्रेरणा मेरे समस्त मान- सिक एवं बौद्धिक अमियानों में अन्तमृत रही है| कदाचित्‌ हम छात्रों के लिए हो उन्होंने एकलव्य का आदश” सम्मुख रखा है। मुझ अकिचन “एकलव्य! के पास है ही क्या कि मैं 'कुछ' अर्पित कर सक्‌ ! केवल साधना, श्रद्धा एवं यह अकथ श्रम का एक कूल जो उन्हीं का वरदान है, उन्हीं को समर्पित है। प्रबन्ध का कलेवर अवश्य बढ़ गया है । मैंने उसे, जहाँ तक हो सका है, कम भी किया है और उसका, जो रूप आपके सामने है, वह मूल शोध-प्रबंध का संशोधित रूप है। मैंने पूरे प्रबन्ध में व्यर्थ के विस्तार को भरसक कम किया है ओर जो विचार आवश्यक हैं उन्हें ही प्रबन्ध में स्थान दिया है ।




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