भारतीय शिक्षा दार्शनिक | Bhartiya Shiksha-Darshnik
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
313
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वामौ दयानंद सरस्वती ९
ऋण्वेदादि-भाष्य-सूमिका' और सत्यार्थप्रकाश' स्वामीजों के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ हैं । इन
ग्रंथों के अ्रध्ययन से दर्शन के संबंब में उनको कुशाग्र बुद्धि ओर गहराई का परिचय
मिलता है। वह नतो अद्वेतवादों थे और न विशिष्टाद्वतववादी । इनमें से किसी पर
उनका विश्वास नहीं था क्योकि उनके विचार में इस जगत् मे केवल तीन तत्तव अनादि हैं :
१, ईश्वर या ब्रह्म, २. जीव या आत्मा, तथा ३. प्रकृति या मूलोपादान । प्रकृति केवल “सत्
स्वरूप है, जीव सत्' और चित्' स्वरूप है तथा ब्रह्म सत्, चित्' और आनंद
रथात् सच्चिदानंद स्वरूप है, श्रतः उन्हु श्रैतवादौ' कहा जा सकता है । वह शंकराचायं
की भाँति यह नहीं कहते “एकम् ब्रह्म द्वि तीयम् किचित् वस्तु नास्ति भ्र्थात् ब्रह्य को
छोड कर शेष सब मिथ्या है : यद्यपि केवल एक ब्रह्म मे विश्वास करने के कारण स्वामी-
जी को श्रद्रैतवादी' ( 74०0०06 ) कहा जा सकता है, तथापि शंकर की भाँति वह
यह नहीं कहते कि ब्रह्य के भ्रतिरिक्त सारा जगत् मिथ्या ह। रामानुज ने शंकर के
मायावाद के सिद्धांत की जो आलोचना की है, उससे तो स्वामीजी सहमत हँ, कितु
दर्शन के तेत्र में उनके द्वारा प्रतिपादित विशिष्टाह्तवाद' ( 2106 141০043 )
को वह नहीं मानते । उदाहरणार्थ, रामानुज का मत है कि जीवात्मा और पदार्थ
श्रन्य कुछ नहीं, वरन् ब्रह्म की दो पृथक् प्रभिन्यक्तिथां ; ब्रह्मके दो प्रकारहँ । इस मतके
विषय में स्वामी जी का कहना है किं यदि ब्रह्य विशुद्ध चित्स्वरूपं श्रौर सर्वत्र हतो वहु
अपने ही श्रमिव्यक्त स्वरूपो-- जीवात्मा भ्रौर प्रकृति (पदार्थ) -से पृथक् किस प्रकार लक्ष्य
किया जा सकता है ? पुनः रामानुज जीवात्मा रौर ब्रह्म में गुणवेधर्म्थं के कारण पुथकता
मानते हैं । अस्तु, स्वामी जी का कथन है कि जब दोनों ब्रह्म और जीवात्मा' के गुण पृथक _
हैं तो वें समान या एक कैसे हो सकते हैं ! अभिव्यक्ति! शब्द की सार्थकता भी
विशिष्ठाद्दैत मत में ठीक नहीं बैठती ।
जीवात्मा ओर ब्रह्म
स्वामीजी के श्रनुसार जीवात्मा ओर ब्रह्य के गुख पृथक्-पृथक् है; श्रतः इस गुणख-
वैधर्म्यं के भ्राधार पर उनको एक या समान नहीं माना जा सकता । पर जीवात्मा श्रौर
ब्रह्म में कुठ गुण समान भो हैँ; दोनों मूलतः चेतन-स्वरूप ह, स्वभाव से पवित्र तथा
शाश्वत हँ । क्या इस অলালঘা प्रथवा साधर्म्यं के कारण भी उन्हं समान या अनन्य नहीं
माना जा सकता ? नहीं । इस तथ्य को समभने के लिए हम ठोस पदार्थ, तरल पदार्थं
तथा अग्नि का उदाहरण ले सक्ते हँ । ये तीनों पदार्थं निर्जीव तथां प्रत्यन्त दृष्टिगोचरः
होने वाले हैँ । दूसरे शब्दो में निर्जीवता तथा प्रत्यक्तता इन तीनों के समान गुण ह ।
परंतु इन समान गुणों अथवा साधर्म्य के आधार पर इन्हें एक नहीं माना जा सकता;
कारण, इन तीनों का असमान गुण अथवा वेधर्म्य इन्हें एक दूसरे से पुथक करता है ।
ठोस पदार्थ का गुण है कठोरता, तरल पदार्थं का गुण है प्रवणशीलसा श्रोर अमन कां
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