भगवान् महावीर: उपदेश और सिध्दान्त | Bhagwan Mahaveer: Updesh Or Sidhdant

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Bhagwan Mahaveer: Updesh Or Sidhdant by तिलकधर शास्त्री -Tilakdhar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सदाचार २ क ১৯ र 4 রি ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम तथ है । ब्रह्मचर्य के नष्ट होते ही, मनुष्य के सभी गुण स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं । , ब्रह्माचय का पालन करनेवाले के पास सभी सदगण स्वत ही आ जाते हैं । . जो बुरी दृष्टि से स्त्रियों की ओर देखता है उसका पतन ग्रवव्यंभावी है । ५. जो अपने को जीत लेता है, वह सबको जीत लेता है । . हजारों भयंकर शत्रुग्नों पर विजय पाने से बढ़कर अपने आप प्र विजय पाना है । . गला काटने वाला झात्रु भी तुम्हारी उतनी हानि नहीं करता जितनी दुराचार करता है । , जीवन और रूप सौन्दर्य बिजली की चमक के समान छिप जाने वाले हैं । . जी अपने पर अनुशासन नहीं रख सकता, वह औरों पर अनु- दासन कसे कर सकता है । अपरिग्रह १. जो ग्यक्ति श्नपनौ कच्छाश्नो को पूणं करना चाहता है बह मानो छलनी में पानी भरना चाहता है। २. जमाखोरी के समान कोई जाल और कोई बन्धन नहीं । ३. हमें जीवन के लिये आवश्यक वस्तुओ्रों का संग्रह भी इस प्रकार करना चाहिए कि उससे दूसरों को कष्ट न हो । ( १५ )




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