देववाणी | Devvaani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
241
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अमेरिका मे स्वामीजी ५५
ल्टिय म्वड हाने का ओर् विशेषत: बहुसंख्यक श्रोताओं के सम्मुख॑,
उनक्र जीवन म ग्रह प्रथम अवसर था, किन्तु इस वक्तृता का फल हुआ
व्रि्यद्शक्तिं कै समान । उन उत्सुक महस नर-नारियां कौ ओर
दमग्बकर उनकी शाक्ति ओर बाम्मिता पूर्ण भाव से जागृत हो उठी और
उन्होंने अपने मधुनिःस्यन्दी कण्ठ से श्रोतृवगें की “अमेरिकानिवासी
भगिनी तथा श्रातगण ” शब्द से सम्बोधित किया | उसी क्षण उन्होंने
विजय प्राप्त कर ढी और जब तक महासभा का अधिवेशन हुआ तब तक
उनका आइर एक दिन के लिये भी कम नहीं हुआ | सभी छोग उनकी
वाणी को वराव्र् आग्रहपूक सुनते थं ओग उन्हीं की क्क्तृना सुनने
के लिये गरमी के दिनों में मी ग्रत्यक दिन দ্র এগ্বিলহাল क अन्त नक
प्रतीक्षा करत रहते च|
यही उनका संयुक्त राज्य में कार्यारम्म था। महासभा का कोय
ममाप्त हाने पर स्वामीजी ने अपनी आवश्यकता के अनुसार घन आदि
के संग्रह के निमित्त एक वक्वेना-कम्पनी (10116 [पोता )
के अनुरध पर उसकी ओर से संयुक्तराज्य के पश्चिमीय प्रदेश में वक््तृता
देन के लिये श्रमण करना स्वीकार किया । बहुसंस्यक श्रोतृमण्डली के
मन को यद्यपि उन्होंने आक्ृष्ट किया था, तथापि इस नापसन्द काम को
उन्होंने जञीघ्र ही द्याग दिया। वे इस देश में घर्माचाय के रूप में
आये थे, इसलिए यह एक अत्यन्त छाभजनक व्यापार होने पर भी
उन्हाोंन उसे छोड दिया, और १८०, के प्रारम्भ में अपने प्रकृत कार्य
को हाथ में लेने के लिए व न््यूयांक आये। शिकागो में रहते समय
जिन लोगों से उनको मित्रता हुई थी, पहले उन लोगों से वे मिले |
वं दोग अल्यन्त श्रीमानू थ। व बीच बीच में उन्हीं छागों के
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