श्रमण संस्कृति : सिध्दान्त और साधना | Sharman Sanskriti Siddhant Aur Sadhna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रमण सेंस्क्तति और उसकी प्राचोचतता . .. ३
के प्रति घणा न रखते हृए सदा समभाव में. रहना चाहिए । जो
सरों का अपमान करता है, वह दीर्घ काल तक संसार में भ्रमण
करता हैं। अतएवं मुनि किसो प्रकार का मद न कर सम रहे ।
चक्रवर्ती भी दीक्षित होने पर अपने से पूवं दीक्षित अनुचर के अनुचर
को भी नमस्कार करने में संकोच न करें, बल्कि समता का आचरण
रें। प्रज्ञासम्पन्न मुनि कोध आदि कपायों पर विजय प्राप्त कर
. समता धर्म का निरूपण करें ।
जैन संस्कृति की साधना समता. की साधना है। समता, सम-
भाव, समहृष्टि ये सभी जैन संस्कृति के मूल तत्त्व हं । जन परम्परा
में सामायिक को साधना को मुख्य स्थान दिया गया है। श्रमण हो या
श्रावक हो, श्रमणी हो या श्राविका हो--संभी के लिए सामायिके
की साधना आवश्यक मानी गई है।
`. समता के अनेक रूप हैं। आचार की समता अहिसा है, विचारों
की समता अंनेकान्त है। समाज की समता अपरिग्रह है, और भाषा
की समता स्थाद्वाद है। जिस आचार और - विचार में समता का
अभाव है, वह आचार और विचार ज॑न संस्कृति को कभी मान्य
नहीं रहा ।
समता. किसी भौतिक तत्त्व का नाम नहीं है, वल्कि मानव मन की
कोमल वृत्ति ही समता तथा कर वृत्ति ही विषमता है। प्रेम समता
है, वेर विषमता है । समता मानव मन का अमृत है और विष॑मता
` विष दहै । समता जीवन है और নিনললা সংঘ है। समंता धर्म है .
ओर विषमता अधमं है । समता एक दिव्य प्रकाश है ओर विषमता.
घोर अंधकार है। समता ही श्रमण संस्कृति के विचारों का
निचोड है । हु
जैसे वेदांत दर्शन का केन्द्र विन्दु अद्वेतववाद और मायावाद है
` सांख्य दशन का मूल प्रकृति और पुरुष का विवेकंवाद है, बौद्ध दर्शन
का चिन्तन विज्ञानवाद और शाुन्यवाद है, वैसे ही जैन संस्कृति का
आधार अहिंसा और अनेकान्तवाद है । जैन संस्कृति के विधायकों
ने अहिसा पर गहराई से विवेचन किया है। उन्होंने अहिंसा की.
एकांगो और संकुचित व्याख्या न कर. सर्वागपुर्ण व्याख्या की है।
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