मधुर मिलन | Madhur Milan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Madhur Milan by जगन्नाथ प्रसाद - Jagannath Prasad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगन्नाथ प्रसाद शर्मा - Jagannath Prasad Sharma

Add Infomation AboutJagannath Prasad Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
+ ~~~ केक चक पा नु लक न টন সিসি যানি নার হরি ল নরসনিলারীনিন টানিরানি হয ] प्रथम अंक) क । নিলা অহ नसीवकी वात है! आज कल सिफारिशसे नोकरी मिलती है लिखने पढ़नेसे नही | मोपाल क्‍या पढ़ा है पर अपने बहनोईकी मददसे तुस्त नोकर हो गया। अब उखकी आमदनीका कया ठिफाना है ! तठव तनख्वाहके सिंचा ऊपर से सैकड़ो रुपये मिलते है। लक्ष्मी--ऊपरसे कैसे मिलते हैं ? बिन्दा--ऊपरसे ऐसे मिलते हैं कि जो कोई कामकी गरजसे दया चही सेट पूजा चढ़ा आया। छक्ष्मी--बीची जी, जब तनखाद मिलती ही है तव ओर ভীত क्‍यों सेंट पूजा चढ़ा आते हैं? बिन्दा--बह क्‍या शोकसे चढ़ा आते हैं। छाचार हो बढ़ाते ऐ--न चढ़ायें तो हैशन हों ओर काम विगड़े ? लक्ष्मी --यह तो बड़ा अन्ध्रै! क्‍या सरकार इसका कुछ उपाय नहीं करती है ? बिन्दा--बह क्यो करने लगी £ वह तो जान वृरूकर कम तलब देती है। जो हो, जबसे यह नौकरी चली है तबसे ही हाय हाय पड़ो है। पहले छोग बनिज व्यापार, खेदी बारी करते धेः 'मजेमे रहते श्े। अब तो अगरेजी पढ़ पढ़कर नोकरियोंके 'पीछे छोग दर दर मारे फिरते हें ओर पाते नही। खरकार भी तनी नोकरियाँ कहांसे दे ? वह पइले गोरोंको देगी या हमको ? बावू जी कहा करते थे कि अगरेजी पढ़कर जबसे नोकरी करने ब्छगा तबसे घरमें वरकत न रही, चाहे जितना छात्रों | ~~~ ..~




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now