कानून और मन | Kanoon Aur Man

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Kanoon Aur Man by यशवन्तसिंह नाहर - Yashwant Singh Nahar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লব कानून श्रौर मन : 9 क्यों नही टिकेगी । उसको पैसे चाहिए, पुरुष चाहिए । वह मैं उसे दे रहा हु । मुं प्रौर्त चाहिए । घर पर वनी गरम रोटी-वक्व पर चाय । वह सब मुझे दे रही है ।। बस वकील साहब आप मेरा मुकदमा खारिज करवालें । साली को तलाक देने मे ईतना फट पड -जितना लडकी ठृढने मे । भाड्‌ में जाएं उसके गवाह और वह-बस मैं श्रब अपनी नयी औरत से खुश हूं। हां इस कारण नौकरी तो नहीं जायेगी । मैंने कहा कभी नही-वह प्रसन्न होकर पला गया ।




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