आधुनिक कविता में मुक्त छन्द का विकास : निराला के विशेष सन्दर्भ में | Adhunik Kavita Mein Mukt Chhand Ka Vikas : Nirala Ke Vishesh Sandarbh Mein
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' पल्लव को एक दूसरी कविता छायावाल' मे इस प्रकार के तीन छन्दो का प्रयोग हुआ है ।'
द्विवेदी युगीन कवि गुप्त की तरह छाया वादी प्रसाद को एक छन्द्-एक प्राचीन छन्द को लोकप्रिय बना
देने का श्रेय जाता है। यह छन्द है-“ओंसू' मे प्रयुक्त छन्द । आखिर यह प्राचीन छन्द कौन सा है 2 विद्वान
मे इस प्रश्न पर मतभेद है । कुछ लोगो के अनुसार यह सखी छन्द हैः कुछ अन्य लोगो के अनुसार यह
मानव छन्द है । वस्तुत सखी मानव, मधुमालती, मनोरमा आदि कई छन्द चौदह मात्राओ के चार चरणो वाले
छन्द है । किन्तु इन चौदह मात्राओ के नियोजन से इन छन्दो की लय अलग-अलग हो जाती है। ओंसु मे
प्रयुक्त छन्द के चरण की लय अलग-अलग हो जाती है। 'ओंसू' मे प्रयुक्त छन्द के चरण भी चौदह-चौदह
मात्राओ से बने है, किन्तु उनकी लय चौदह मात्राओ के प्राचीन छन्दो से सर्वथा भ्न है। इसलिए ऑसू” का
छन्द न सखी छन्द है और न मानव छन्द । वह एक नया ही छन्द है- यह बात “सखी' ओर मानव छन्दो
के उदाहरणो की लय के साथ आंसू के छन्द की तुलना करने से स्पष्ट हो जायेगी । जगनाथ प्रसाद भानु
के द्वार दिये गयं सखी ओर मानव छन्दो के उदाहरण है-
(क) सखी- काल भुवन सखी रचि माया, यह माया पतिहि कुभाया
प्रभु तक अति प्रीति प्रकासी, रविरास किया सुख रासी ।
(ख) मानव- मानव देहै धार जो राम नाम उच्वारै जो।
नहि तिनको डर जम कोह पुण्य पुजतिन समको है।'“
अब तुलना के लिए हम “ऑसू' का एक छन्द तेते है-
“ये सब स्फुलिग है मेरी, इस ज्वालामयी जान के ।
कुछ शेष चिह है केवल, मेरे उस महा मिलन के ॥“
अतएव यदि इस छन्द को यदि नया नाम ओस् दिया गयाहै तो वह ठीक ही है। प्रसाद की अपेक्षा
अन्य छायावादी कवियो ने हिन्दी मे प्रचलित प्राचीन मात्रिक छन्दो काक्मही प्रयेग किया है। प्रसाद के
पश्चात् प्राचीन मात्रिक छन्द का सर्वाधिक प्रयोग पन्त जीने किया है। निराला मे परम्परागत मात्रिके छन्दो
की सख्या बहुत कम है- वीर, तारक, तमाल, रोला आदि । परम्परागत मात्रिक छन्दो के टुकड़े उनके गीतो व
मुक्तछन्दो के बीच-बीच मे मिलते है । अपने मूल-परम्परागत रूप मे प्रयुक्त मात्रिक छन्द महादेवी जी मे बहुत
कम है । उन्होने चोपाई यला, हरिगीतिका, गीतिका, पीयूष वर्ष, एवम् लावनी इत्यादि परम्परागत मात्रिक छन्दो
का प्रयोग किया हे।
आधुनिक हिन्दी कविता के गीतो मे लयात्मक वैविध्य अत्यधिक है। इन सब लयो को वर्गीकृत करना
लगभग असम्भव है । कुछ गीतो की रचना भक्तिकालीन पदो जैसी है। कुछ गीतो के लयाधार का सर्वाधिक
पल्लव पत पृ 165
इतिहास आर आलोचना नामवर सिह पृ 76
आधुनिक हिन्दी काव्य मे छन्द योजना पुचू लाल शुक्ल पृ 253 54
छन्द प्रभाकर जगनाथ प्रसाद् भानु पृ 4445
ऑसू अस्लाद पृ 9
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