जैन - शिलालेख - संग्रह भगा - 2 | Jain - Shilalekh - Sangrah Bhag - 2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
524
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पमोसाका लेख १३
१. राज्ञों गोपालीपुत्रस
२. बहसतिमित्रस
` ३, मातुलेन गोपाया
४. वैहिदरीपुत्रेन [ आसा ]
५ आसराढसेनेन लेनं
६. कारितं [ उदाकस ]' दस-
७. मे सबछरे कहापीयान॑ अरहं--
८. [त] न ` - ^ -? ---)[॥]
“-गोपालीके पुत्र राजा चद्सतिमित्र (शृहस्पतिमिन्र ) के
मामा, वथा गोपाी वेहिद्री ( अथात् वैहिदर-रानकन्या ) के इत्र आसा
-ढसेनने करशपीय अरदतो”“ ““ दसय वर्मे एक गुफाका निर्माण
कराया ।
[छा, 7, 9 22] /
७
पभोसा (प्रभात )--आ्राकृव ।
{ दवितीय या प्रयम शताब्दि ই* प्.
१. अधियछात्रा रान्ो शोनकायनपुत्रस्थ वगपाल्य्य
२, पुत्रस्य रामो तेवणीपुत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण
३. वैहिदरीपुत्रेण आपादसेनेन कारितं [॥ ]
अल वाद--अधिछन्नाके राजा श्ोनकायन (क्ौनकायन) के पुत्र
-राभा वैशपालफे त्र ८ भीर ) तेवणी ( अर्यात् तरेनण-राजकन्या ) के पुत्र
राजा भागवतके पुत्र (तथा) वेहिदरी (अर्थात् वैहिद्र-राजकन्या ) के
पुत्र आषादसेनने बनवाई ।
[ दोद-झुद्रकाढके अक्षरोंसे मिलने-झुलनेके कारण दोनों झिल्ाछेजोंका
-काक विश्वासके साथ द्वितीय या प्रथम शत्तान्दि ₹০ पूर्व निश्चित किया
१ मवतः 'गोपालिया'। २ सभी अक्षर उस्चयाप्रन्न हैं ।
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