जैन - शिलालेख - संग्रह भगा - 2 | Jain - Shilalekh - Sangrah Bhag - 2

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Jain - Shilalekh - Sangrah Bhag - 2 by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पमोसाका लेख १३ १. राज्ञों गोपालीपुत्रस २. बहसतिमित्रस ` ३, मातुलेन गोपाया ४. वैहिदरीपुत्रेन [ आसा ] ५ आसराढसेनेन लेनं ६. कारितं [ उदाकस ]' दस- ७. मे सबछरे कहापीयान॑ अरहं-- ८. [त] न ` - ^ -? ---)[॥] “-गोपालीके पुत्र राजा चद्सतिमित्र (शृहस्पतिमिन्र ) के मामा, वथा गोपाी वेहिद्री ( अथात्‌ वैहिदर-रानकन्या ) के इत्र आसा -ढसेनने करशपीय अरदतो”“ ““ दसय वर्मे एक गुफाका निर्माण कराया । [छा, 7, 9 22] / ७ पभोसा (प्रभात )--आ्राकृव । { दवितीय या प्रयम शताब्दि ই* प्‌. १. अधियछात्रा रान्ो शोनकायनपुत्रस्थ वगपाल्य्य २, पुत्रस्य रामो तेवणीपुत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण ३. वैहिदरीपुत्रेण आपादसेनेन कारितं [॥ ] अल वाद--अधिछन्नाके राजा श्ोनकायन (क्ौनकायन) के पुत्र -राभा वैशपालफे त्र ८ भीर ) तेवणी ( अर्यात्‌ तरेनण-राजकन्या ) के पुत्र राजा भागवतके पुत्र (तथा) वेहिदरी (अर्थात्‌ वैहिद्र-राजकन्या ) के पुत्र आषादसेनने बनवाई । [ दोद-झुद्रकाढके अक्षरोंसे मिलने-झुलनेके कारण दोनों झिल्ाछेजोंका -काक विश्वासके साथ द्वितीय या प्रथम शत्तान्दि ₹০ पूर्व निश्चित किया १ मवतः 'गोपालिया'। २ सभी अक्षर उस्चयाप्रन्न हैं ।




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