मेरे द्वार तरु नीम का | Mere Dwar Taru Neem Ka

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Mere Dwar Taru Neem Ka by रमेश कुमार त्रिपाठी - Ramesh Kumar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पीले, रसीले, पके चुए इसके । बटोरे हे गे, खेल उनसे खेले है । इसकी सूखी सीको से दाँत साफ किये है, कान खुजलाये है मीठे-मीठे सिहरकर । अपने पुरातन की कभी शाखा को कटा देख, दिल मे दर्द हुआ है । द्वार को शान इसे समझा मेने । इस प्राचीन पादप के कुछ ही पहले से होता है इतिहास शुरू मेरे विप्र-वश का, छोटे-से गाँव मे । सग-सग पुरखे के बीत गयी पोच पीटि्यो | मेरे पुरखे पले-बढे तरुवर के ऑगन मे । फिर यही से उन्होने शुरू की आखिरी गगा-यात्रा अपनी | साथ निभायेगा क्या अन्त तक अति परिय सखा यह मेरे वशधरो का वर्तमान ग्राम मे ? ६




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