संत तुकराम | Sant Tukaram

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Sant Tukaram by हरि रामचंद्र दिवेकर - Hari Ramchandra Divekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही लि एकनाथ की माता का-नाम इक््मियणी था| बचपन में ही एकनाथ के माता-पिता का काल हो जाने के कारण उसका पालन-पोषण उस के दादा चक्रपाणि ने ही किया । इस की चुद्धि बड़ी तीत्र थी! विद्याभ्यास पूरा करने पर यह देवगिरि गया | यहाँ के सूवेदार जनार्दन पंत अंधिद्ध मगद्धक्त थे | मुसलमानों की सेवा में रह कर भी जिन सत्पुदुषों ने अपने घमं तथा माषाकी रक्षा भली-माँति की थी, उनमें से ही जनार्दन पंत एक ये। दो मालिकों की सेवा एक ही सेवक को करना बड़ा कठिन है | पर जनादंन पंत अपने मुसलमान मालिक तथा सर्वेश दत्ताजेब दोनों की सेवा बड़ी चठुस्ता से करते थे | इन्होंने शाने- श्वरो अंथ का अध्ययन बड़े परिश्रम से किया था। एक शिष्य से इन से उपदेश लिया। शिष्य की अ्रसाधारण बुद्धि देख जनाद॑न पंत ने एकनाथ को मराठी में अंथ-रचना करने की श्राज्ञा दो। एक्रनाथ मराठी और फ्रारसी दोनों माषाओं में निपुण थे | इनके प्म-अंथों सें फ़ारसी के अनेक शब्द पाए जाते हैं| इन की अंथ-रचना में ओम हा- गवत के एकादश स्कं परं लिखी हई टीका बहुत प्रत्तिद्ध है। इस टौका-लेखन का पैठण में आरंभ हुआ और तीर्य-वात्रा करते-करते हों एकनाथ ने इस का बहुत-सा भाग लिख कर टोक़ा काशांदुरो में पूरो को । वह अंथ पूरा होते ही इनकी प्रत्तिद्धि काशी के पंडितों में खूच, हुईं और तब से आज तक महाराष्ट्र भाषा में यह अंथ वहुत माना जाता हैं । इस समय एकनाथ की आयु केवल २५ वर्ष की थी। इन्होंने बहुत से अंथ लिखे | इन के ग्रंथों में अद्वेत-हान और मगवद्धक्ति का वर्धा खुंदर मिल्ााप देखने में आता है । इन का आचरण मी वड़ा शुद्ध श्रोर অনিল খা | সুলতা तो इन के नस-तस में मरी थी। इन्हों ने अतिश्द्रों को मी अपनाया और पितृ-भ्राद्ध के लिए. बनाई रसोई से छुषित अंत्वजों को भी ब्राह्मणों के पहले जिमाया था। यह एक वार श्रालंदी गए और वर्शाँ पर महीनों वक्त अपनी इरिकिया से लोगों को ईशमुण सुनाते হই । भीज्ञानेश्वर महाराज के समाधि की छुरी हालत महाराष्ट्र मक्तिघ्




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