श्री हरि विरह माला | Sri Hari Birah Mala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ तमी तो किशोर वय से आपने अपने सभी कायै ओर साया अलौकिक व्यवहार खनः ही संभाला । उनका जन्म स्थानीय वेश्य कुटुंब व्यापारी सामान्य अक्षरज्ञान वाला है, मायामय सासारकि जीवन मय हे । सिर्फ यह ज्येष्ठा सुपुत्री निमिल बच्ची बहिरंतर खरूपमे सभी से सर्वथा ही अति विभिन्‍न है। विद्याध्ययन मे अध्यापको को रखने मे पिता का सहकार रहा; परतु इछ समय वाद्‌ ही अनेक विषम योगों मे अपने ध्येय की वह अकेटी ही राही बनीं । परन्तु वह अकेली नहीं थी, माता सरस्वती की कह ओर उनके आराध्य प्रिय श्री इयामसुदेर का परम सम्बल साथमे था! | ओर कड़ी विकट वीथी से चलते हुए, द्याम तपस्विनी की प्रच्छन्न प्रताप शक्ति सहल्न गुण खिल्ल उठी ! उसने आज के क्षण तक पैतृक सम्पत्तिका कोई उपयोग नहीं किया ! दिया पर लिया नहीं तनिक भी | सव दी पर विनीत सोम्य भावना बहा... ... किशोर बय के अत से ही-- भआतमशक्ति पर ही रहनेका अटल अ्ययमय आरभ किया ! इस खरस्वतीने अपनी सररती के अनन्य भावुकोंके अनन्य भावनासे अर्पित भाव-द्रव्य का ही उपयोग किया!




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