मध्य गांगेय मैदान में संजाति | Madya Gangey Maidan Me Sanjati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गगाक्तरण भी सहज नही था । कालान्तर मै रघुधशी राजा भगीरथ की कठौर तपस्या से प्रसन्न हकर ब्रहुमा नै गगा की मृत्युनीक भेजना स्वीकार कर लिया, यदि शैकरर्गगा को अपनी জ্তাআঁ पर रौकना' स्वीकार लैं । क्षैर के गंगा' को धारण करने के लिए तैयार हीने पर गंगावतरण हुआ किन्तु शिव के विदाल जटायजों में गंगा बंधी रही तथा भगीरथ को एक बार पुनः সঁশা কা मुक्त कराने देलु तपस्या करनी पड़ी । भगीरथ के तप सै प्रसन्‍न होकर शिव ने अपनी ज़्टार्जाँ से गंगा की मुक्त करा दिया | इसी से गंगा भगीरथी के साभ से जानी जाने लगी । बसी प्रकार की और भी किम्वदीन्‍तया गंगा के नाम से प्रचलित हैं | गंगा ने सगर पुत्रौ क स्पर्श कर उन्द मौक्ष प्रदान किया । विद्वानाँ का विचार था कि गँगा की उत्पीत्त तिब्बत में मानसरौवर के निकट कैला पर्वत से हुई है किन्तु उस समय तक समुचित सर्वेक्षा नहीं हुए थे, अब इस बात में सन्‍्देह नहीं है कि गंगा की उत्पत्ति गदवाल क्षेत्र से हुई दे । भागीरथी गगा की प्रमुख ज्लधारा है | गंगा का सूल प्त हश्हिमाच्छादित गगौत्री कै निकट गोमुख नामकस्थान है 150? 56-24 790 6५ ' ।8' ॥ जौ समुद्र से 12,770 पुट ऊँचा है । यह हस क्षेत्र के बड़े हिम नदियाँ में सै एक है । भागीरथी 22,000 तथा 23 ,000 पट उवि शिर वाले क्मडििम से जच्छादित चौसम्ा ते बहती हे । यह आश्चर्यजनक तथ्य हे क यद्यपि 7गारथी गैगौत्री शहिमनद से होकर लहती है परन्तु यह गीमुत्त में आकर सूर्य के दर्शन करती है | इस भ्रूमिगत नदी का आविभावि हिमनद के हिमाठ्वर के पानी के पिघलने और पृथ्वी के नीवैन्नीचे बहने से हुआ | হুল ~ तै नवलने वानी विभिन्‍न छोटी नदियाँ पष्लापश्टी मैं जाकर मित्तती हैं | गँगीत्री के ठीक नीचे मागीरथी में दक्षिग




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