कविताएँ | Kavitaen

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Kavitaen by कीर्ति चौधरी - Kirti Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निस्तब्ध आधी रात निस्तब्ध आधी रात सोती सी दिशाएँंँ खुल गई है अचानक ही आँख । दूर से आता उजाला झिझरियों की राह चौड़े पत्र के किस पेड़ की परछाँह रह-रह काँपती दीवार पर । बड़ी-छोटी टहनियाँ उलझे-नुकीले पात हिलते हवा संग हर बार बदल देते रूप-- फूल अधखिले कुमुदिनि कुमुद के गौझ जैसे बढ़ा कर अब हाथ भर लूँ अंजली झुरमुट बाँस के बन के बड़े अपरूप दौड़ छिपूँ निकलूं चाँद से यों करूँ अठखेली यह फूलों लदी निर्गन्ध किशुक डार झरती क्यों नहीं




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