गुंजन | Gunjan

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Gunjan by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(क + 4 फ़रवरी, २ | ५ | देखूँ सबके उर की डाली--- किसने रे क्‍या क्‍या चुने फूल जग के छबि-उपवन से भरकूल ? इसमें कलि, किप्तलय, कुछुम, शूल ! किप्त छबि, किस मधु के मधुर भाव ? किस रँग, रस, रुचि से किसे चाव ? कवि से रे किप्तका क्‍या दुराव ! किपने ली पिक की विरह-तान १ किसने मधुकर का मिलन-गान †? या पुल्-कुघुम,या सुकुल-म्लान { देखूँ सब के उर की डाली--- सब में कुछ सुख के तरुण-फूल , सब में कुछ दुख के करुण-शूल ;--- सुख-दुःख न कोई सका भूल | १९३२ ] [1




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