देव और बिहारी | Dev aur Bihaari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भामका ওই दूसरे वाक्य सें एक भी सीलित शब्द नहीं है| टवरे-जसे अक्षरों का भी अभाव है। दीर्धात शब्दों के बचाने की भी चेष्ठा की गई है। कानों को जो बात अपग्रिय है, वह पहले में ओर जो बात प्रिय है, वह दूसरे में मौजूद है । इस गुणाधिक्य के कारण कवि की जात अवश्यंभावी है। राजा ने भी अपने निर्णय में कवि ही को जिताया था। निदान शब्द्‌-माधुये का यह गुण स्पष्ट है। झब इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि संसार की जिन आषाओं में कविता होती है, उनमें भी यह गुण साना जाता है या नहीं । संस्कृरत-साहित्य में कविता का अंग खूब भरपूर है। कविता समझानेवाल्े अंथ भी बहुत हैं । कहना नहीं होगा कि दून भरथो में सर्वेत्र ही माधुर्य-गुण का आदर है। संस्कृत के कवि अकेले पदों के लालित्य से भी विश्रुत हो गए हैं । दंंडी# कवि का नाम लेते ही लोग पहले उनके पद-लालित्य का स्मरण करते हैं। गीत- योविंद के रचयिता जयदेवजी का भी यही हाल है। कालिदास की असादु-पूर्ण मधुर भाषा का सर्वेत्र ही आदर है । संस्कृत के समान ही फारसी मे भी शब्द्‌-मधुरता पर ज्ञोर दिया गया हे । श्मररेज्जी भं भी 1,4०४४ &€ 0 1006५. का कचिता पर खासा प्रभाव साना गया है 1 । भारतीय देशी भाषाओं में से डदूं में शीरी कलाम कहनेवाले की सर्वत्र प्रशंसा हे। गजा मे यह गुण জল গর গদাম # उपमा कालिदासस्य भारवेरथेगौरवम्‌ ; दरार्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो णाः | 1111,6 97 ৮2226. 29001720164 6९87 (76 ४३९, 08080७8 10 18 11076 20370601256] 82505908220. 6८186 ४6 70901040 श १५४९८ 1008 12709 120100019015 025 8020. 10005 00097780018 80७०7108010167 0, © %20187915 छापे 100590258 88৭001%570208 08 14698 ९0५४6 6 0४ 008, টি | [,९९८६७४७४ ०१ ४06 2111890 90808-- ०४117 )




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