शतपथ ब्राह्मण हिंदी विज्ञानं -भाषाएँ | Shataptha Brahman hindi Vigyan - Bhashya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.3 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निाट्रारदासि कै पावरघसपनम हक ' (३इर्ड)
पदार्थ जाननेमें समर्थ है । इसो असर रुप अन्तय्यीमी को 'हृदय” कड़ा
जाता है । यह सय प्रजापति है । इसीने सबको नियत मार्गपर आझारूद कर
रक्खा हैं, झतएव इसे 'नियति सय” क६1 जाता है । इस नियातिकीं चय्यी
( आचरण-च्यापार ) से ही सारे पदार्थ नियतिचर चने रहे दे । सर्य्य,
चन्द्रमा, इधिवदी, पशु, पत्ति, क़ृमि, कीट, पथ, पत्ति आदि सभी नियत
भावपर झारूद है । क्या मजाल यह जरा भी अपने कार्य्ससे (नियत र्वभा-
वसे ) विचनित होजांय । यही 'नियतिचर” निरुक्त क्रमके अनुसार झाज
पाश्चात्यमापा्मि 'नेचर” रूप परिगात होरहा है। इस सत्य देवागकी मे््यादा
का यदि कोई उल्लंघन करता है तो तद्द मनुष्य दी हैं । इसी झअभिमायते
याज़वल्क्य कहते है--
मैच देवा अतिक्रामन्ति, न पितरः, न पत्र: । सलुप्या एवेके अतिक्रामन्ति
(शत. २ का. 'दारप्रा) इति । इसीलिए मनुष्य के लिए 'अ्न्तर्संहिता वे
मनुष्या१, यह कहाजाताहि । मचुप्य क्यों इसका उल्नघन करनेमें समयदेतेहें
इस परश्नका समाधान उसी च्राम्दया में कियाजायगा । यहां केवल हमें यही
बतनानोह कि चादे व्यव्रहारिक दृप्टिक्रे अनुसार वह वस्छु जडदा, या
चेतनद्दों, सबके केन्द्रप॑ स्थिति, श्रादान, विसर्मात्मिक अक्तररूप अन्तय्योभी
प्रतिष्ठित रहताएँ । यर्यापि-श्रन्तरसे नर उन्पन्न दोताहे । चरकी माणकलासे
स्वयम्भरुका पादुभाव होताड। भापकलासे परमेप्टी उत्पन दोताहे । आपोमय
परमेप्टी के उद्रम सरय्य उत्पन्न दोताहे । एवं स्रय्यमें देवताोका विकास
डोताढ । ऐसी श्रवस्थामें देवताझोके श्रतिरद्धमपितामद अनक्तरकों देवता
नहीं चवलाया जासकना,; तथापि अव्यय पुरुूपकी अपेक्षासे हम भ्र्रकों
देवता कह सकतदें । उक्थ झात्माई । श्रर्क देवताडे । यह झात्मा, भर देवता
शब्दकी सामान्य परिभाषा हैं । व्यय उक्यहडे । भ्रन्र उसके अकेहे ।
श्रल्तर पुरूप उक्यई, नरमुरुष श्रकहे । सय्य उक्यदे, रदिमू श्र्क है !
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