लोकमान्य तिलक | Lokmanya Tilak

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Lokmanya Tilak by गोपाल देशपांडे - Gopal Deshpande

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लोकमान्य तिलक । ५ वे किसी भी प्रकारके कडे-से-कडे दण्डके भयसे सत्यका पक्ष नही छोडते थे । अओकवार वाल-तिलूकको छोडकर कवषाके सब विद्याथियोने कक्षा मे मूंगफली खाी भौर भूनके छिलके कक्षामे डाल दिअ । ज्यो ही अध्यापक महोदय कक्षामे प्रविष्ट हुओे अृन्होने क्रोधसे पुखा--“ ये छिलके किसने फेके हं ? सव विद्यार्थी भयसे कोप अढे । कक्पामे অল্লাতা ভা गया । किन्तु बाल-तिलक आँधीमे भी चट्टानकी भॉति स्थिर थे। कऋुद्ध अध्यापक सारी कक्षाको दण्ड देनेके विचारसे बाल तिलकके पास गओ और अन्हे दण्ड देनेवाला ही थे कि अितनेमे वह बालवीर कहने लगा--“ आप अन्याय कर रहे है। मे निरपराध हूँ, भिसलिओ में दण्ड स्वीकार नही करूंगा |” अध्यापकने ओन्हे कक्‍्षाके बाहर चले जानेकी आज्ञा दी। वे तुरन्त अपनी स्‍्लेट और झोला लेकर सीधे घरकी ओर चल पडे । गगाधर शास्त्रीके समक्ष अध्यापकने तिरकपर अहडताका आरोप लगाया, परन्तु तेजस्वी पिताने अुत्तर दिया कि मेरा पुत्र असत्य कभी नही बोल सकता और असके आचरणमे असा असयम भी कभी नहीं आ सकता । अध्यापक महोदय चुप हो रहे । जिसमे भी बाल तिछूककी विजय हुओ । ' पूतके पॉव पालनेसे ' ( विर्या्थियोंक्ते नेता) जिसी समय गगाधर शास्त्री डिप्टी जअिन्स्पेक्टरके पदपर नियुक्त होकर पूना चके गअ । अिसलिओ वाल तिलकको भिस प्रसिद्ध विद्यानगरीमे पढने ओर रहनेका सुखवसर मिल गया । भुन दिनो पनाम अंग्रेजी स्कूलके हेडमास्टर जेकब साहब थे। वे बड़े कर्तव्यपरायण और कठोर अनुशासनशील व्यक्ति थे। अुनका अितना दबदवा था कि कोओ अनको आँख-से-आँख मिलानेका साहस नहीं करता था । येक वार न जाने किसने कोओ अपराध किया और प्रत्येक विद्यार्थीके हाथपर अन्होने दो-दो वेंत मारना प्रारम्भ कर दिया । तिलकने तत्काल निर्भीकतासे जिस अन्यायका विरोध किया । भिसपर जेकब साहवने अन्हे कक्षा छोडकर चले जानेकी आज्ञा दी ! आचर्य यह कि ज्यो दही तिलक शान्त भावसे बाहर जाने लगे त्यो ही सब विद्यार्थी জল




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