जननायक | Jannayak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
262 MB
कुल पष्ठ :
603
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि उस ग्रन्थ का द्वितीय संस्करण अब तक नहीं छपा, पहला तो जब्त हो
ही गया था !
बन्धुवर मित्र जी का मैं कृतज्ञ हूँ क्योकि उन्होने मे इस वृहद् ग्रन्थ
के प्रावकथन के बहाने श्रपने विचार पाठकों के सम्मुख रखने और.
साहित्यिक विवेचन करने का दुर्लभ अवसर प्रदान किया है। वसे तो.
समस्त देश ही-- बल्कि यों कहना चाहिये रि सम्पूण संसार दी- ;
महात्मा गाँधी जी का ऋणी है, पर मेरी तरह के सहस्रो ही व्यक्ति पेते |
भी ह, जो व्यक्तिगत तौर पर बापु के कदार रहे है। हम लोग जन्म
जन्मान्तर मे भी उस ऋण से मूक्त नहीं हो सकते, पर उसे- आंशिक रूप
में ही सही- चुकाने के भिन्न भिन्न तरीके हैं। कोई भगवान की वन्दना
करता है तो कोई भगवान के भक्तों की! मित्र जी को पहली पद्धति
पसन्द है, हमें दूसरी। हम अपनी श्रद्धा के पुष्प केवल राजघाट पर ही
नहीं, बल्कि समस्त देश में फैले हुए उन पवित्र स्थलों पर चढ़ाना चाहते हैं,
† किसी ने समाधि नहीं बनाई, जो श्राज स्वेथा उपेक्षित पड़े हैं, पर
जिन्द भूल जाना हमारे लिये घोर कृतघ्नता की बात होगी । वस्तुतः हम
दोनों के दृष्टिकोण परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
न नाकम)
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