परिच्छेद पहला खंड | Paricched Pehala Khand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
525
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| १३ 4
ओर गौड पर अधिकार तो उन्होंने किया पर शशांक को
वे नहीं पा सके । गंजास के पास सन् ६१९--२० का एक दान-
पत्र मिछा हे जो शशांक के एक सामंत सेन्यभीति का है। इससे
जान पड़ता है कि साधवशुप्त के मगधघ में प्रतिष्ठित हो जाने पर
वे दक्षिण की ओर चले गए ओर कलिंग, दक्षिण कोशलर आदि
पर राज्य करते रहे । सन् ६२० में हपवद्धन परम प्रतापी चालु-
क्यराज ट्वितीय पुलकेशो के हाथ से गहरी हार खाकर छोटे थे ।
सन् ६२० के कितने पहले शश्ांक दक्षिण में गए इसका ठीक
ठोक निमग्चय नहीं हो सकता। सन् ६३० ३० से चीनी यात्री
हुएन्सांग भारतवप में आया ओर १४ वपे रहा। उस समय
गशांक कण्णसुबर्ण में नहीं थे । शशांक कच्न तक जीवित रहे इसके
जानने का भी कोई साधन नहीं हे। हर्पवद्धेन से अवस्था में
शर्शाक बहुत बड़े थे। हर्पवर्दधन की मृत्यु सन् ६४७ या ६४८ में
हुईं | इसके पहले ही शशांक की मृत्यु हो गई होगी क्योंकि हर्प-
पद्धेन ने अनेक देशो को जय करते हए सन् ६४२ मे गंजास
पर जो चढ़ाई की थी उसके अंतर्गत शशांक का कोई उल्लेख
नहीं है। यदि अपने परम शत्रु शशांक को वे वहाँ पाते तो
” इसका उल्लेख वड़े गवे के साथ होता । शर्चाक मारे
नहीं गए ओर बहुत दिनों तक राज्य करते रहे इसे सब
इतिहासज्ञों ने माना है। विसेंट स्मिथ अपने इतिहास में
लिखते है-
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