सत्यवादी स्वार्थप्रेम | Satyavadi Swarthaprem

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Satyavadi Swarthaprem by गोरावाला खुशाल जैन - Gorawala Khushal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ १७) “४ आप तो मुझे एक ही वारम चौपट कर देना चाहते हैं | कुछ विचारतो कीजिए कि दृसरेंके पीछे भी तो घरवार लगा हुआ है। जब सब्र कुछ आपहीको दे दिया जायगा तब क्या वह वेचारा भीख মীনা £ » ४ में कब कहता हूँ कि आप मेरे पीछे मीख माँगे | मैंतो आपको अपनी हालत सुना रहा हूँ । मेरे लिये तो यही कन्या सब कुछ है ।मेरा दुख ते इसीके द्वारा दूर होगा | यदि अब भी मेरा कमे नही चुक्रा तव फिर यह ॒वद्नामीका येकरा क्यौ शिरपर्‌ उठाडँगा १” « आपकी छड़की है।इस ढियि उसपर आपका अधिकार है। आप जो चाहें उसके बढ़लेमें ढे सकते हैं । पर यह तो सोचिये कि जिस घरमें यह लडकी जायगी वहाँ जब्र खानेहीकों न रहेगा तब वह वहाँपर क्या आराम करंगी-क्या सुख भोगेगी ! ”? ४ जिसके पास इतनी गुंनायश नहीं है उसे अपना इरादा ही छोड देना चाहिये | ” ४ आप कहते हैं वह ठीक है। निस्के पास्त इतना रुपया दनेको न होगा वह क्यो अपने सिरपर एसी वदाका बन्न उटा- बेगा : मैंने नो ऊपर कहा है वह सर्व साधारणकी स्वितिपरसे । कहा है । वर्योकि सब तो एकते घनी नहीं होते | इस लिये छड़की - वको भी यह उचित है कि वह॒ अपनी उट्कीके आगामी सुख दुःखका विचार करे । आखिर है तो ख्डकी उसरीकी न १ ”




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