सत्यवादी स्वार्थप्रेम | Satyavadi Swarthaprem
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोरावाला खुशाल जैन - Gorawala Khushal Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)€ १७)
“४ आप तो मुझे एक ही वारम चौपट कर देना चाहते हैं | कुछ
विचारतो कीजिए कि दृसरेंके पीछे भी तो घरवार लगा हुआ है।
जब सब्र कुछ आपहीको दे दिया जायगा तब क्या वह वेचारा भीख
মীনা £ »
४ में कब कहता हूँ कि आप मेरे पीछे मीख माँगे | मैंतो
आपको अपनी हालत सुना रहा हूँ । मेरे लिये तो यही कन्या सब
कुछ है ।मेरा दुख ते इसीके द्वारा दूर होगा | यदि अब भी मेरा
कमे नही चुक्रा तव फिर यह ॒वद्नामीका येकरा क्यौ शिरपर्
उठाडँगा १”
« आपकी छड़की है।इस ढियि उसपर आपका अधिकार है।
आप जो चाहें उसके बढ़लेमें ढे सकते हैं । पर यह तो सोचिये
कि जिस घरमें यह लडकी जायगी वहाँ जब्र खानेहीकों न
रहेगा तब वह वहाँपर क्या आराम करंगी-क्या सुख भोगेगी ! ”?
४ जिसके पास इतनी गुंनायश नहीं है उसे अपना इरादा ही
छोड देना चाहिये | ”
४ आप कहते हैं वह ठीक है। निस्के पास्त इतना रुपया
दनेको न होगा वह क्यो अपने सिरपर एसी वदाका बन्न उटा-
बेगा : मैंने नो ऊपर कहा है वह सर्व साधारणकी स्वितिपरसे
। कहा है । वर्योकि सब तो एकते घनी नहीं होते | इस लिये छड़की
- वको भी यह उचित है कि वह॒ अपनी उट्कीके आगामी सुख
दुःखका विचार करे । आखिर है तो ख्डकी उसरीकी न १ ”
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