सूत्रपाहुड प्रवचन | Sutrapahud Pravachan

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Sutrapahud Pravachan by उध्यात्म्योगी - udhdhyatmyogi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूत्रपाहुड प्रवचन १३ मध्यम पद ,१६ अरब,, ३४ करोड, ८५३ लाखे, ०७ हजार, ८८८ श्रक्षरोमे माना गया है। इतनेका गुणा उत्त-२० अंकोमे दिया. जाय + तो सर्व पदोकी संख्या कितनी हुईं याने - श्रपुनरुक्त श्रक्षर वाले द्वादशाज्भ समस्त आ्रामममे कितने पद हुए, जिनका प्रमाण है-- १ भरब, १२ करोड, ८५३२ लाख, ५८ हजार, ००५, इतने सारे श्रागमके पद है श्रोर एक पद इतना बडा होता कि .बडासे बड़ा एक ग्रन्थ एक पदमे न कहलायगा । अब यहाँ यह जानना कि यह पद -जो बतलाया है श्रभी इससे भी कुछ बच गया है आगम, जो एक पदमे नही श्राता, किन्तु श्रक्षर ही रह गए उनको बोलते हैं अगबाह्य । इस प्रकार अ्रंगप्रविष्ट और अंगबाह्यं ये समस्त -भ्रागम कहलाते हैं । जो भ्रक्षर बच गए थे, जो एक पद नही कहलाये, ठे श्रक्षर हैं ८5 करोड, ०१ लाख, ०८ हजार) १७५ । इतना बडा आ्रागम है जिस श्रागमको कोर पुस्तकमे नही बाँध सकता, मगर कालके समय जो जनशासनर्मे सचभेद वन गया यातो दिगम्बर जनसंघ मे तो सही बात रखी याने जो शास्त्र बने, चाहे उनमे उस द्वादशांगका भी कोई शब्द हो तिमपर भी ग्रन्थोके नाम दिए गए हैं, श्रगके नाम नही दिये, किन्तु दूसरे सधने अज्धोके नाम “दिये हैं श्रपनी छोटी-छोटी पुंस्तकोके ? । ( १८ ) श्राचाराद्ध सुत्रकृताद्खु व स्थानाद्धक्े विषय वं पदगणनाका निर्देश भ्रब उस द्वादशाज़के नाम और प्रत्येक अद्भमे कितने पद हैं उसका वर्णोन किया जा रहा है। १२ ग्रद्धके नाम है--(१) प्राचारांग, (२) सूत्रकृत श्रद्ध, (३) स्थान श्रंग, (४) समवाय अग, (५) व्याख्याप्रजञप्ति श्रग, (६) ज्ञातुधसंकथा भ्रंग, (७) उपासकाध्ययनं अंग, (८५) अतकृत दशाग श्रग, (€) श्रनुत्तरोपादक दश श्रग, (१०) प्रश्न व्याकरण श्रग, (११) विपाकसूत्र श्रग, (१२) दृष्टिवाद श्रग । इन १२ श्रगोमे जो दृष्टिवाद अंग है श्रन्तिम, उसका बहुत बडा रूप है, जिसके श्रागे ये ११ श्रद्ध मिलकर भी बहुत छोटा रूप रहता है । इसका वणन करेगे, पर 'पहलेसे सुनो--श्राचाराग मायने क्या ? जिस श्रद्धमे मुनियोके अआ्राचरणका वंन हुआ, कैसे ठहरना, बैठना, चर्या करना, कंसा यत्त रखना, किस तरह ध्यानमे श्राना, उनका क्या तप हैं, यह सब॒वर्णंन श्राचारागमे भ्राता है । इसके १८ हजार पद है । एक पक्के तो कसेडो परक्तर होते, है, एेसे १८ हनार पद ह । दुसरा श्रद्ध दै सूच्रछृत श्रग । इस सूत्रछृत श्रड्धमें क्रियावोका विशेप वणेन है । कंसे ज्ञानी जनोका विनय करना, कैसे धर्मात्मा जनोका आ्रादर करना, केसी स्वमतकी धमेक्रिया ই कसी परमतकी घमक्रिया है ठेसी धार्मिक क्रियाका विशेष वरन है । इस भ्रगके १६ हजार पद हैं । तीसरा अम है स्थान श्रग । इस स्थान अंगमे पदार्थों का स्थानके अनुसार वरान है। जैसे २-२ क्या चीजें होती है उनका संग्रह । समस्थानका वर्णन है'। कुछ वर्णन ग्रन्थोके अनुसार समस्थान सून्रमे, किया है । एक क्या है ? केवल एक




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